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वाइकोम-सत्याग्रह

मिलता। इसलिए अगर मैं यह प्रस्ताव न रखता तो वह सूझबूझका भारी अभाव ही कहलाता। मेरे जैसे सत्याग्रहीके लिए यह बात अत्यन्त स्वाभाविक थी कि अपनी ओरसे ऐसे प्रस्ताव रखूँ जो यदि कट्टरपन्थियोंकी ओरसे रखे जाते तो मुझे ईमानदारीके साथ स्वीकार करने पड़ते। मैं तो यहाँतक कहूँगा कि कट्टरपन्थियोंमें से थोड़ेसे लोगोंको छोड़कर और सभी क्षेत्रोंसे इस सुधारको जो बहुत बड़ा समर्थन मिला है, उसका मार्ग मेरे प्रस्तावोंसे ही प्रशस्त हुआ है। यदि अधिकांश सवर्ण हिन्दू इस सुधारके वास्तविक विरोधी होते या इस विषयमें कोई ऐसा सन्देह होता कि शास्त्रोंकी व्याख्यासे इस सुधारका समर्थन शायद न हो, तो सत्याग्रहका रूप बिलकुल भिन्न ही होता। तब यह आन्दोलन एक अधर्मपूर्ण प्रथाको दूर करनेके बजाय, खुद हिन्दू-धर्ममें ही परिवर्तनका आन्दोलन होता। सच तो यह है कि जिन लोगोंका इस आन्दोलनके संचालनसे सीधा सम्बन्ध था, उन्होंने मेरे प्रस्तावके औचित्यपर कभी शंका नहीं की है। उनकी सलाह और पूरी सहमतिके बिना मैं कोई कदम उठा ही नहीं सकता था। यह तो वाइकोमके सत्याग्रहियोंका ही काम है कि वे इस संघर्षको शीघ्रतासे सफलतापूर्वक समाप्त कराने के लिए उक्त समझौतेके शब्दों और इसकी भावना, दोनोंका पूरी तरह निर्वाह करें, इसका पालन करें और सवर्ण हिन्दुओंका काम है कि वे इस आन्दोलनका समर्थन अनेक स्थानोंपर दिये गये वचनके अनुसार करें। सत्याग्रहियोंको समझौतेका स्थूल पालन करनेके लिए यह जरूरी है कि वे सीमा-रेखाको तबतक पार न करें जबतक पूरा समझौता नहीं होता या समझौतेके उद्देश्यकी पूर्तिकी दृष्टिसे उसे पार करना मुझसे पर्याप्त पूर्व सूचना मिलनेके बाद आवश्यक नहीं हो जाता। समझौतेकी भावनाका तकाजा यह है कि सत्याग्रही पूरी शिष्टता और अधिकसे-अधिक विनम्रतासे काम लें। यदि वे सुधारके विरोधियोंके प्रति आदिसे अन्ततक शिष्टताका व्यवहार करेंगे तो विरोधकी तीव्रता कम हो जायेगी। उन्हें ऐसा मानना चाहिए कि सरकार इस सुधारके खिलाफ नहीं, बल्कि जल्दीसे-जल्दी इसे अमलमें लानेको वचनबद्ध है। कोई कारण नहीं कि मैं राज्य-संरक्षिका महारानी या दीवान साहब या पुलिस कमिश्नर द्वारा दिये गये वचनपर अविश्वास करूँ। आश्रममें भी सत्याग्रहियोंका आचरण वैसा ही रहना चाहिए जैसा सीमा-रेखापर। आश्रम एक ऐसा व्यस्त कर्मक्षेत्र होना चाहिए जहाँ हर आदमी हमेशा अपना निर्धारित काम करनेमें लगा रहे। वह सादगी और सफाईका नमूना होना चाहिए। सभी सदस्य अवकाशके पूरे समयमें चरखा चलाने के लिए वचनबद्ध हैं। कताई, धुनाई और बुनाई विभागोंमें सुधारकी बहुत-कुछ गुंजाइश है। हर सदस्य बुनाईमें नहीं तो कमसे-कम धुनाई और कताईमें तो पारंगत हो ही। हर सदस्यको इस बातका आग्रह रखना चाहिए कि वह कात-बुनकर अपनी जरूरत-भरका कपड़ा खुद तैयार कर ले। सभी सदस्योंको हिन्दी भी अच्छी तरह सीख लेनी चाहिए। वे हिन्दू धर्मकी प्रतिष्ठा और गरिमाके संरक्षक हैं और उन्हें ऐसा मानना भी चाहिए। हमारी लड़ाई मन्दिरोंके आसपासकी सड़कोंके खुलते ही खत्म हो जानेवाली लड़ाई नहीं है। हमें इसे हिन्दू धर्मके शुद्धीकरणका और उसमें जो बहुतसी बुराइयाँ घुस गई हैं उनके निवारणके गौरवशाली संघर्षका सूत्रपात मानना चाहिए।


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