पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 26.pdf/४६४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४३४
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

वे ऐसे सुधारक नहीं हैं जिन्हें विरोधी पक्षका कोई खयाल न हो या जो कट्टरपन्थियोंकी हर भावनाको आघात पहुँचाये। उन्हें तो आचरणकी पवित्रता तथा शास्त्रोंमें मौजूद सभी भली और उच्चादर्शपूर्ण मान्यताओंपर श्रद्धाभाव रखनेके मामलेमें बड़ेसे-बड़े कट्टरपन्थीसे भी आगे ही रहना है। वे बड़ी गहराईसे विचार और मनन किये बिना शास्त्रीय प्रमाणकी अवहेलना न करें और अपने भीतर ऐसी क्षमता पैदा करने के लिए संस्कृतका अध्ययन करें और देखें कि शास्त्रोंकी मर्यादाको पूरा ध्यानमें रखते हुए उनमें क्या-क्या सुधार करने सम्भव हैं। वे जल्दबाजी न करें बल्कि अपने सत्य और अहिंसाके धर्मके अनुकूल चलते हुए निर्भीकतासे सभी अपेक्षित कर्त्तव्योंका पालन करें। और प्राचीन ऋषियोंके समान ही धैर्य और श्रद्धाका अवलम्बन करें।

मन्दिरोंमें प्रवेश

सड़कोंका खोला जाना हमारा अन्तिम उद्देश्य नहीं, बल्कि सुधारके क्रममें पहला ही सोपान है। आम तौरपर मन्दिर, सार्वजनिक कुएँ और सार्वजनिक स्कूल सवर्ण हिन्दुओंकी तरह अस्पृश्योंके लिए भी खुले होने चाहिए। लेकिन यह सत्याग्रहियोंका तात्कालिक लक्ष्य नहीं है। हम सुधारकी गति जबर्दस्ती तेज नहीं कर सकते। स्कूल तो लगभग सबके-सब, अस्पृश्योंके लिए खुले ही हुए हैं। लेकिन मन्दिर और सार्वजनिक कुएँ या तालाब नहीं खुले हैं। इसके पक्षमें सावधानीके साथ जनमत तैयार करना चाहिए और बहुमतको पक्षमें लाना चाहिए; यह सुधार तभी सफलतापूर्वक कार्यान्वित किया जा सकता है। इस बीच इसका इलाज यह है कि ऐसे मन्दिर बनाये जायें तथा ऐसे तालाब या कुएँ खुदवाये जायें जो हिन्दुओं और अस्पृश्यों दोनोंके लिए समान-रूपसे खुले रहें। मुझे इसमें कोई भी सन्देह नहीं कि अस्पृश्यता निवारणके आन्दोलनने बहुत प्रगति की है। अब हमें अविवेक या उत्साहकी अधिकताके कारण इसमें बाधा न डालनी चाहिए। ज्यों ही यह खयाल दूर हो जायेगा कि जन्मके कारण किसी मनुष्यके स्पर्शसे कोई अपवित्र हो सकता है त्यों ही शेष काम आसानीसे सफल होकर रहेगा।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २-४-१९२५