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२४५.टिप्पणियाँ

सिखोंका बलिदान

अकालियोंकी स्थिति अब भी अनिश्चित जान पड़ती है। सरदार मंगलसिंहने 'केन्द्रीय सिख लीग' के अध्यक्षकी हैसियतसे इस आन्दोलनका संक्षिप्त विवरण प्रकाशित किया है, उसमें सिखोंके बलिदानका निम्न संक्षिप्त विवरण मिलता है:

३०,००० लोग गिरफ्तार किये गये, ४०० मर गये और मारे गये, २,००० घायल हुए और पन्द्रह लाख रुपये जुर्माना दिया गया--जिसमें अवकाशप्राप्त सैनिकोंकी जब्त की गई पेंशने भी शामिल है।

अगर ये आँकड़े सही हों तो उनसे ऐसा बलिदान व्यक्त होता है जो सिखोंके उच्च कोटिके साहस और आत्मत्यागका परिचायक है। और वह साथ ही उस सरकारके लिए भी उतनी ही अपयशकी बात है जिसने इस घोर कष्ट-सहनका कोई भी खयाल नहीं किया है।

बंगाल

मैं अगली दो मईको फरीदपुरमें होनेवाले प्रान्तीय सम्मेलनमें भाग लेनेकी उम्मीद करता हूँ। मैं मानता हूँ कि खद्दर, चरखा और अस्पृश्यता निवारणका काम कर सकनेका लोभ ही इसके पीछे मुख्य प्रेरणा है। मैं इसी लोभसे बंगालके अन्य हिस्सोंमें भी जाऊँगा इसलिए जो लोग चाहते हों कि मैं दूसरे हिस्सोंमें भी जाऊँ, वे दौरेका प्रबन्ध करनेवाले लोगोंसे पत्र-व्यवहार करें। इस दौरेका प्रबन्ध स्वभावतः तो देशबन्धु चित्तरंजन दास को ही करना उचित था। लेकिन अभी-अभी मुझे आचार्य रायका एक तार मिला है जिसमें कहा गया है, देशबन्धु अभी पटनामें हैं किन्तु मुझे आपको जिन खादीकेन्द्रोंमें ले जाना है, मैं उनकी सूची बना देना चाहता हूँ। इसलिए जिन सज्जनोंको मेरे दौरे में दिलचस्पी हो वे कृपया प्रफुल्लचन्द्र रायसे सम्पर्क करें।


मिलकी पूनियाँ

मुझे मालूम है कि कई जगहोंमें अब भी मिलकी पूनियोंका उपयोग किया जाता है। कहने की जरूरत नहीं कि मिलकी पूनियोंसे कता सूत हाथकता सूत नहीं है। मिलकी पूनियाँ तो बहुत मोटे किस्मके सूतकी तरह ही होती हैं और उनके प्रयोगसे हाथ कताईका उद्देश्य, अर्थात् भारतके सात लाख गाँवोंमें हाथ-कताईका प्रचार ही विफल हो जाता है। इन गाँवोंमें मिलकी पूनियाँ भेजना असम्भव और अनुपयुक्त है। पूनियोंको गाड़ियोंमें भरकर बम्बईसे पंजाबके गाँवोंमें ले जाना तो एक ऐसा उपचार है जो अपने आपमें स्वयं रोगसे भी बुरा है। धुनाईका धन्धा अभी मिट तो नहीं गया है। पेशेवर धुनिए लगभग हर जगह मिल सकते हैं। इसके अलावा,