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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

है जो अपने देशके राजनीतिक जीवन और देशकी उन्नतिके मामलेमें सक्रिय तौरपर दिलचस्पी लेते हों। यह बात मद्रास अहातेके मुसलमानोंपर विशेष रूपसे लागू होती है। क्या आपने कभी इसका कारण सोचने की कोशिश की है?

जहाँतक यह आरोप सही है, मैं समझता हूँ मुसलमान देशके मामले में कम दिलचस्पी इसलिए लेते हैं कि वे भारतको, जिसपर उन्हें गर्व होना चाहिए, आज भी अपना देश नहीं मानते। बहुतसे मुसलमान यह मानते हैं कि 'हम तो विजेता जातिके लोग हैं।' मेरी समझमें उनका यह खयाल बिलकुल गलत है। मुसलमानोंकी इस अलहदगीके लिए हम हिन्दू लोग भी एक हदतक जिम्मेदार हैं। हम अभीतक उनको इस राष्ट्रका अभिन्न अंग नहीं मान पाये हैं। हमने उनके हृदयोंपर विजय पानेकी कोशिश नहीं की है। इस दुर्भाग्यपूर्ण स्थितिके कारण इतिहाससे सम्बन्धित है और ऐसे हैं जिनका तब उत्पन्न होना अनिवार्य था। इसलिए हिन्दुओंके दोषका अनुभव तो केवल इस समय ही किया जा सकता है। यह जागृति चूँकि अभी हालमें आई है, इसलिए वह सर्वत्र नहीं फैल पाई है और बहुतसे हिन्दुओंको मुसलमानोंके शरीर-बलसे जो भय है उसके कारण इस दोषको स्वीकार करके मुसलमानोंके हृदय जीतनेकी कोशिश करना उनके लिए कठिन हो गया है। लेकिन मुझे पाठकोंके सामने स्वीकार करना चाहिए कि अब मैं अपने आपको हिन्दू-मुस्लिम समस्याका विशेषज्ञ नहीं मानता। इसलिए मेरी रायका मूल्य सिर्फ तात्त्विक है। मैं अपनी रायपर इस समय भी दृढ़ हूँ; लेकिन मैं यह जरूर मानता हूँ कि मुझे किसी भी पक्षसे अपनी बात मनवाना बहुत कठिन काम मालूम हुआ है।

इस देशको राजनीतिने इधर जो एक दुर्भाग्यपूर्ण मोड़ लिया है उसका आपके पास क्या इलाज है? मोड़ यह है कि जहाँ इस देशकी राजनीतिको और उसके राजनीतिक जीवनकी ओर शुरूसे सिर्फ थोड़ेसे धनी और साधनसम्पन्न लोग ही आकर्षित हो पाये थे, वहाँ अब खास तौरसे पिछले चार वर्षोंसे स्थिति ऐसी हो गई है कि मध्यमवर्गीय और गरीब लोगोंके लिए इस देशमें सक्रिय और सफल राजनीतिक जीवन व्यतीत करना लगभग असम्भव हो गया है।

यहाँकी राजनीतिने कोई दुर्भाग्यपूर्ण मोड़ नहीं लिया। हम एक लाजिमी मंजिलसे गुजर रहे हैं। गरीब लोगोंमें आत्म-चेतनाकी जो तीव्र भावना जाग्रत हो गई है, उसने सभी अनुमानों और बने-बनाये सूत्रोंको उलट-पुलटकर रख दिया है। हम अभी तक अपने-आपको नई अवस्थाके अनुकुल नहीं ढाल पाये हैं। मुझे तो सभी जगह सभी चीजोंमें एक नई व्यवस्था रूप लेती दिखाई पड़ रही है। इस दृष्टिसे तो हिन्दुओं और मुसलमानोंके उपद्रवोंको देखकर भी, मैं भविष्यकी ओरसे हताश नहीं होता। वर्तमान अव्यवस्थामें से एक व्यवस्था अवश्यमेव जन्मेगी। अगर हम केवल देखें, प्रतीक्षा करते हुए प्रार्थना करते रहें तो यह नई व्यवस्था जल्दी आयेगी। अगर हम ऐसा करेंगे तो जो बुराई सतहपर आ गई है, वह जल्दी दूर हो जायेगी, लेकिन अगर हम अपनी