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राष्ट्रीय सप्ताह

जल्दबाजी और अधैर्यके कारण उस सतहको छोड़ देंगे तो गन्दगीको बाहर निकलने देने के बजाय नीचे तलमें बैठा देंगे और फिर इस बुराईको दूर करने में ज्यादा समय लगेगा।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया,२-४-१९२५

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२४७. राष्ट्रीय सप्ताह

६ और १३ अप्रैल भारतीयोंको सदा याद रहेंगे। ६ अप्रैल, १९१९ को राष्ट्रमें अप्रत्याशित और भारी जन-जागृति हुई थी। १३ अप्रैलको जलियाँवाला बागमें हिन्दुओं, मुसलमानों और सिखोंने ऐसा बलिदान किया था, जिसमें उनके रक्तकी त्रिवेणी बह निकली थी और वे मृत्युका आलिंगन करके एक हो गये थे।

लेकिन तबसे साबरमतीका कितना ही पानी बह गया है और राष्ट्रने भी बहुत-सी धूप-छाँह देख ली है। आज हिन्दू-मुस्लिम एकता की बात एक स्वप्न-जैसी दिखाई दे रही है। मैं देखता हूँ कि आज दोनों लड़नेकी तैयारियाँ कर रहे हैं। हरएक कौमका दावा है कि वह सिर्फ आत्मरक्षाके लिए ही तैयारी कर रही है। अंशतः दोनों कौमें सच्ची भी हैं। यदि वे यह मानें कि उन्हें लड़ना ही चाहिए तो वे बहादुरीसे लड़ें और पुलिस और अदालतसे मिल सकने वाले संरक्षणसे नफरत करें। यदि वे यह कर सकें तो १३ अप्रैलसे हमें जो सबक मिला है वह व्यर्थ न होगा। यदि हमें गुलाम नहीं बने रहना है तो हमें ब्रिटिश बन्दूकोंपर और अदालतके अनिश्चित न्यायपर भरोसा रखना भी छोड़ देना होगा। स्वराज्यके लिए उत्तम शिक्षा तो यही है कि ऐन मौकेपर भी इन दोनोंपर विश्वास न रखा जाये। सर अब्दुर्रहमानको वरिष्ठताकी मंसूखी[१], नमकपर कर लगाना और आडिनेंस बिलका[२] पास कराना, इन सब कामोंसे यह बात स्पष्ट हो जाती है कि ब्रिटिश राज्यकर्त्तागण तो हमारे विरोधके बावजूद हमपर राज्य करते रहना चाहते हैं। सच बात तो यह है कि वे अपने कार्योंके द्वारा जहाँतक मुमकिन हो सकता है, साफ-साफ हमसे यह कहते हैं कि हमारी मददके बिना ही वे हमपर राज्य करेंगे। क्या हममें भी यह हिम्मत नहीं हो सकती कि हम भी उनकी मदद लेनेसे इनकार करें और उसके बिना ही काम चला लें? हमने यह तो देख लिया है कि जब हम लड़ते-झगड़ते नहीं हैं तब तो हम उनकी मददके बिना ही काम चला

१. वाइसराय लॉर्ड रीडिंगकी भारतसे अनुपस्थिति के कालमें लॉर्ड लिटनने उनका कार्य सम्भाला था। इस बीच लॉर्ड लिटनकी जगहपर सर अब्दुर्रहमान वाइसरायकी कार्यकारिणी परिषद्के वरिष्ठ सदस्य होनेके कारण बंगालके कार्यवाहक गवर्नर बनाये जानेके अधिकारी थे; किन्तु उनकी वरिष्ठता मंसूख करके सर जॉन केर बंगालके कार्यवाहक गवर्नर बना दिये गये थे।

२. क्रान्तिकारियोंके अपराधोंको रोकनेके लिए बंगालमें सामान्य फौजदारी कानूनकी पूतिके लिए जारी किया गया बंगाल अध्यादेश।