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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लेते हैं। कुछ और अधिक हिम्मत करें तो लड़ने-झगड़नेपर भी हम उनकी मददके बिना काम चला सकेंगे। सिरको बचाने के लिए पेटके बल चलनेके बजाय तो फूटे सिरपर पट्टी बाँधकर सीधे खड़ा रहना ही अधिक अच्छा है। यदि हम सरकारी दखलके बिना मनमाना लड़ें भी तो मैं देख सकता हूँ कि उसमें से हिन्दू-मुस्लिम-एकता निष्पन्न हो सकेगी। लेकिन यदि हम ब्रिटिश सिपाहियोंकी छायामें रहकर लड़ेंगे और अदालतमें झूठी कसमें खाकर गवाही देंगे तो मैं सच्ची एकताके विषयमें निराश हो जाऊँगा। हमें स्वराज्य हासिल करने से पहले खुद मनुष्य बनना चाहिए।

किन्तु सत्याग्रह सप्ताह मुख्यतः आत्मशुद्धि और आत्मनिरीक्षणका सप्ताह है। मेरा दृढ़ विश्वास है, और वह दिन-प्रतिदिन दृढ़तर होता जाता है कि हम जबतक अपना आचरण शुद्ध न करेंगे, दूसरे शब्दोंमें कहें तो जबतक सत्य और अहिंसाका पालन न करेंगे तबतक हमारा यह दुखी देश सुखी न होगा। ऐसी शुद्धता प्रार्थना और उपवाससे ही आ सकती है। वर्तमान स्थितियोंमें हड़तालका तो प्रश्न ही नहीं उठता। इसलिए जिनका प्रार्थना और उपवासमें विश्वास है, उनसे मेरा अनुरोध है कि वे ६ और १३ अप्रैलके दिन प्रार्थना और उपवासके पवित्र कार्यमें लगायें। खद्दर पहनना और सूत कातना ये दो ऐसे कार्यक्रम हैं; जिनमें युवक और वृद्ध, धनी और निर्धन, स्त्री और पुरुष सभी समान रूपसे उपयोगी कार्य करते हुए भाग ले सकते हैं। जो सूत कात सकते हैं वे स्वयं यथाशक्ति सूत कातें और अपने मित्रोंको सूत कातने के लिए कहें। जो अपने-अपने गाँवों और शहरोंमें खद्दरकी फेरी लगा सकें, वे फेरी लगायें। वे इस प्रकार इस त्याग और बलिदानके सप्ताहका उपयोग अत्यन्त महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय कार्य कर सकते हैं।

हिन्दुओंको अपनी अस्पृश्यताकी अशुद्धि दूर करनी है, वे अस्पृश्योंको गले लगा सकते हैं। वे संकटापन्न अस्पृश्योंके सहायतार्थ जितना धन दे सकें, दे सकते हैं और उन्हें अन्य प्रकारसे भी यह अनुभूति करा सकते हैं कि हिन्दुओंमें उनका वर्ग अब तिरस्कृत वर्ग नहीं रहा है।

मेरी दृष्टिमें एकता, खद्दर और अस्पृश्यता निवारण स्वराज्यके आधारस्तंभ हैं। इसीपर विश्वका वह भव्यतम भवन बनाया जा सकता है, जब कि किसी दूसरी नींवपर बनाया गया भवन बालूकी बुनियादपर खड़ी की गई इमारतकी तरह कमजोर होगा।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २-४-१९२५