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भाषण: कालीपरज परिषद्, वेडछीमें

करोड़पति निवंशी होते देखे गये हैं। भगवान आपको ऐसा निर्मल हृदय और निर्मल आत्मा दे कि आपने जो प्रार्थना अभी यहाँ सुनी, आप उसका अनर्थ न करें और सच्चा अर्थ स्वीकार करें।

[गुजरातीसे]
महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ७

८. भाषण : कालीपरज परिषद्, वेडछीमें

१८ जनवरी, १९२५

भाई जीवनभाई, कालीपरज तथा अन्य जातियोंके भाइयो और बहनो,

मैंने अपने जीवन में बहुत-सी परिषदें देखी हैं। पचास लोग इकट्ठे हों तो उसे कांग्रेस कहते हैं और पाँच इकट्ठे हों तो उसे परिषद्। मैंने कुछ परिषदें ऐसी भी देखी हैं जो नीची कही जानेवाली जातियोंके लोगोंकी ही थीं। मैने आज-जैसी सादी परिषदें भी बहुत देखी हैं। भारतमें ही नहीं, बल्कि आफ्रिका और यूरोपमें भी। किन्तु ऐसा सुन्दर और मनोरम सम्मेलन तो मैंने यह पहला ही देखा है। इसके लिए स्वागत-समिति और स्वयंसेवक दोनों धन्यवादके पात्र हैं। इसमें कमसे-कम रुपया खर्च किया गया है, यह ठीक ही है, क्योंकि एक गरीब मुल्कको यही छाजता है। आपने सम्मेलनके साथ सुन्दर और आदर्श प्रदर्शनी भी रखी है। यदि कोई हिन्दुस्तानी नेता इस प्रदर्शनीको देखकर भी चरखेके सम्बन्धमें अश्रद्धालु बना रहे तो मैं उसकी स्थिति दयनीय ही समझूँगा। इसे देखनेके बाद कोई भी खयाल नहीं कर पायेगा कि कातना और धुनना आवश्यक नहीं है। यदि हम देशकी दरिद्रताको दूर करना चाहते हैं तो सबको इन्हें आवश्यक ही मानना चाहिए।

मुहम्मद अली नहीं आ सके हैं। इसके लिए उन्होंने तार भेजा है और क्षमा माँगी है। आप शायद यह जानते हैं कि वे किसी समय बहुत बड़े पदपर थे। बादमें जो-कुछ हुआ वह भी आपको मालूम होगा। उन्होंने उस समय[१] कालीपरजके भाइयों और बहनोंके सुख-दुःखमें भाग लेनेका प्रयत्न किया था। अब वे फिर आपसे मिलकर जान-पहचानको ताजा करना चाहते थे, किन्तु वे बीमार हो गये। इसके अतिरिक्त उन्हें दो पत्र[२] निकालने पड़ते हैं। उन्होंने मुझे तार दिया है कि वे नहीं आ सकते, इसके लिए क्षमा चाहते हैं।

यह परिषद् तीन वर्षसे होती आ रही है। और प्रतिवर्ष ऐसी प्रदर्शनियाँ भी आयोजित की जा रही हैं। पिछली सभी परिषदोंके प्रस्ताव मैं देख गया हूँ; इस बार प्रस्ताव तैयार नहीं किये गये हैं। किन्तु कुछ मिनट बातचीत करनेसे पता चला है कि कुछ प्रस्ताव पास तो किये जाने हैं।


२६-२
 
  1. असहयोगके दिनोंमें।
  2. कॉमरेड और हमदर्द।