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२४८. दो प्रश्न

अपनी दक्षिण-यात्रामें मुझे यह बात मालूम हुई कि कुछ कांग्रेस कमेटियाँ सदस्यताके चन्देके तौरपर सूतके बजाय पैसे ले रही हैं। मैंने यह भी सुना कि करीब-करीब सभी जगह ऐसा हो रहा है। एक सदस्य और सम्पादककी हैसियतसे मुझे यह कहने में जरा भी हिचक नहीं होती कि यह कार्रवाई बेकायदा है। वैसे यह बात दरअसल बेकायदा है या नहीं, इसका निर्णय कार्यसमिति कर सकती है। मैं ऐसे मामलोंमें प्रमुखको हैसियतसे अपना निर्णय बिलकुल नहीं देना चाहता। लेकिन एक सामान्य बुद्धिके मनुष्यकी तरह सामान्य बुद्धि के मनुष्योंके लिए लिखते हुए मैं कांग्रेसके सदस्योंको यह बात याद दिलाना चाहता हूँ कि सूतके बदले शुल्ककी जगह पैसे देने के सवालपर बहस हुई थी और वह नामंजूर किया गया था। चन्देके तौरपर सूत देनका नियम बनाने के पीछे यही विचार है कि हरएक शख्स जो कांग्रेसमें शामिल होना चाहता है, स्वयं ही अच्छे सूतको पहचानने और खरीदनेकी तकलीफ करे। कांग्रेसके बही-खातोंमें तो सिर्फ सूतके चन्देकी अदायगीका ही विवरण रहना चाहिए, रुपये पैसेके चन्देका नहीं। पैसोंके रूपमें चन्दा लेना संविधानका भंग करना है। मैं तो एक कदम आगे बढकर यह भी कहूँगा कि यदि समझौतेकी [१] प्रेरक भावनाको ध्यान में रखकर विचार किया जाये तो कांग्रेस कमेटियोंको सिर्फ खुद कातनेवाले लोगोंको ही सदस्य बनाना चाहिए और उन्हींकी जरूरतें पूरी करनी चाहिए। जो खद कातना नहीं चाहते, वे अपना चन्देका सूत तो भेज सकते हैं; लेकिन कमेटियोंको तो खुद कातनेवालोंकी ही जरूरत पूरी करनेकी भरसक कोशिश करनी चाहिए, ताकि उनके सदस्योंमें हाथ-कताईका प्रचार हो जाये। इसलिए मेरी रायमें तो कमेटियोंका यह फर्ज है कि वे चन्देका सब रुपया वापस कर दें। जो सूत खरीदना चाहें, उन्हें हाथकता सूत मुहैया करनेकी व्यवस्था निजी संस्थाओं या व्यक्तियोंको करनी चाहिए। जबतक इस मर्यादाकी रक्षा न की जाये, तबतक हम यह नहीं कह सकते कि हमने नये मताधिकारपर अमल किया है या उसे मुनासिब मौका दिया है। मैं निजी तौरपर इसमें कोई हर्ज नहीं मानता कि कांग्रेसमें स्वयं सूत कातनेवाले कुछ सौ सदस्य ही हों, बशर्ते कि वे 'हम कांग्रेसके सदस्य हैं', सिर्फ इस अभिमानसे उत्साहित होकर ही सूत कातें, अन्य किसी प्रेरणासे नहीं। इसलिए मैं आशा करता हूँ कि वे कमेटियाँ जिन्होंने सूतके बजाय रुपया लिया है, सब रुपया लौटा देंगी और सदस्योंको, यदि वे सदस्य रहना चाहें तो, हाथकता सूत भेजनेकी सलाह देंगी। यदि इससे इन सदस्योंको कोई शिकायत हो तो उन्हें अधिकार है कि वे इस मामले में कार्य-समितिका निर्णय प्राप्त करें।

१. कलकत्ता समझौता। देखिए खण्ड २५, पृष्ठ ३०७-८।