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कुछ तर्कोका विवेचन

और मनमाने प्रेम-सम्बन्ध बढ़ें। यदि मनुष्य सम्भोगके लिए ही विषयमें लिप्त होता है तो फिर फर्ज करें कि यदि वह बहुत लम्बे समयतक अपने घरसे दूर रहे, या दीर्घकालीन युद्ध में व्यस्त रहे, या विधुर हो जाये या उसकी पत्नी ऐसी बीमार हो जाये कि कृत्रिम साधनोंका प्रयोग करते हुए भी अपने स्वास्थ्यको हानि पहुँचाये बिना वासनाकी वृत्तिके अयोग्य हो, तो ऐसी अवस्थामें वह क्या करेगा?

लेकिन दूसरे पत्रलेखक [१] कहते हैं:

सन्तति-नियमन सम्बन्धी आपके लेखमें आप यह कहते हैं कि कृत्रिमसाधन हानिकारक हैं। जिसे सिद्ध करना है, आप उस बातको पहलेसे मानकर चलते हैं। सन्तति-नियमन सम्मेलन (लन्दन १९२२) में यह प्रस्ताव १६४ के विरुद्ध ३ मतसे स्वीकार कर लिया गया था कि गर्भ-निरोधके स्वास्थ्यकर उपाय नीति, न्याय और शरीर-विज्ञानकी दृष्टिसे गर्भपातसे बिलकुल ही भिन्न हैं और ऐसे उत्तम उपाय हानिकारक या वंध्यत्वके उत्पादक हों, यह बात किसी प्रमाणसे साबित नहीं हो पाई है।

मेरे खयालसे ऐसे विशाल चिकित्सक समुदायका निर्णय सिर्फ कलम चला कर ही रद नहीं किया जा सकता। आप लिखते हैं कि बाह्य साधनोंका उपयोग करनेसे तो शरीर और मन निर्बल हो जाने चाहिए। क्यों हो जाने चाहिए? मैं कहता हूँ कि आधुनिक वैज्ञानिक तरीकोंसे निर्बलता नहीं आती; हाँ, अज्ञानवश हानिकारक उपाय काममें लेनेसे तो जरूर आती है और इसलिए सन्तानोत्पत्तिमें समर्थ वयस्कों को इसके उचित उपाय सिखाना आवश्यक है। आप इन डाक्टरी उपायोंको कृत्रिम साधन कहते हैं, किन्तु यदि डाक्टर संयमके उपाय सुझायें तो वे भी तो कृत्रिम साधन ही होंगे। आप कहते हैं, सम्भोग करना सुखके लिए नहीं बताया है। किसने नहीं बताया है? ईश्वरने? तब उसने कामवासना क्यों उत्पन्न की? कुदरतके कानूनमें कार्योंका फल अच्छा या बुरा अनिवार्य है। कृत्रिम विधियोंके प्रयोगकर्ता भी अपने कार्योका फल भोगते ही हैं। अतः आपकी यह दलील, जबतक आप यह साबित न करें कि कृत्रिम साधन हानिकारक हैं, किसी कामकी नहीं। कार्योकी नैतिकता या अनैतिकताका निर्णय उनके परिणामोंसे किया जाना चाहिए।

ब्रह्मचर्यके लाभोंका वर्णन करने में बहुत अतिशयोक्तिकी गई है। बहुतसे डाक्टर बाईस-तेईस सालकी उम्रके बाद ब्रह्मचर्यको निश्चित रूपसे हानिकर मानते हैं। आप अपने धार्मिक पूर्वग्रहके कारण सन्तानोत्पत्तिको छोड़कर किसी अन्य हेतुसे सम्भोग करना पाप मानते हैं और इससे सबपर पापका आरोपण एक करते हैं। शरीर-विज्ञान यह नहीं कहता। ऐसे पूर्वग्रहोंके सामने विज्ञानकी उपेक्षा करनेके दिन अब नहीं रहे।

१. अंशत: उद्धृत।