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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

शेखी मारने लगे और अपरिग्रहका थोड़ा-सा पालन करके ही संसारको उपदेश देनेके लिए निकल पड़ें तो कैसा अन्याय होगा। मुझे तो लगता है कि ब्रह्मचर्यकी परिभाषा और क्षेत्र क्षण-क्षण बढ़ता ही जा रहा है और मैं आज वैसा ब्रह्मचारी नहीं हूँ कि ब्रह्मचर्यकी पूर्ण परिभाषा कर सकूँ। सत्यकी परिभाषाके सम्बन्धमें भी यही बात कही जा सकती है। मैं अभी इतना सत्यशील नहीं हुआ कि सत्यकी भी पूर्ण परिभाषा कर सकूँ। अहिंसा भी एक ऐसा ही तत्त्व है। जिस शास्त्रकारने इस तत्त्वकी खोज की उसको भी इस भावको व्यक्त करने के लिए विधेयात्मक शब्द नहीं मिला, क्योंकि उसने कहा कि गुणकी कोई सीमा नहीं है, अत: उसने अहिंसा शब्दकी योजना की। उसकी स्थिति 'नेति नेति' कह उठनेवाले ऋषियोंकी-सी हई थी। जो लोग किसी तत्त्वकी साधना करना चाहते हैं उन्हें इस तत्त्वको समझकर ही उसकी साधना करनी चाहिए।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, १२-४-१९२५

२५२. भाषण: ढसामें

२ अप्रैल, १९२५

दरबार साहबको [१] सरकारने पदच्युत किया। इसकी वजह यह है कि उन्होंने कौमकी सेवा की थी। पर क्या वे पदभ्रष्ट हुए हैं? उनसे ढसाका राज्य छिना तो उन्हें बोरसदका राज्य मिला। आज उन्हें संसार जानता है; और वे बोरसदके लोगोंके हृदयोंपर राज्य कर रहे हैं। बहुतेरे लोगोंने भारतके स्वराज्य-यज्ञमें बहुत बलिदान किया है, परन्तु राजाओंमें से तो वे अकेले ही निकले हैं। क्या उनका ढसाका राज्य चला गया है। वह तो तभी जा सकता है जब आप उन्हें निकाल दें और कहें, आप चले जाइए; आपके लिए हमारे हृदयोंमें स्थान नहीं है। परन्तु मुझे लगता है कि उन्हें आपने ही पदच्युत किया है। आपने उन्हें जो वचन दिया था, वह तोड़ डाला है। अन्त्यजोंने संकल्प किया था कि वे विदेशी सूत नहीं बुनेंगे; उन्होंने उसको पूरा नहीं किया; और शराब तथा मांस छोड़ देनेकी जो प्रतिज्ञा की थी, वह भी तोड़ दी। पृथ्वी चाहे रसातलमें चली जाये, परन्तु वचन कहीं टूट सकता है? फिर जो मनुष्य राजाको दिया गया वचन तोड़ता है उसका तो सिर ही काटा जाना चाहिए। पर आज न तो वचनके लिए बिकनेवाले हरिश्चन्द्र रहे, और न सिर काट लेनेका हक रखनेवाले राजा ही। अपना वचन अन्त्यजोंने तोड़ा और आपने भी तोड़ा। यदि आपको दरबार साहबकी सचमुच जरूरत होती तो क्या आपकी ऐसी हालत होती? कितनी बहनोंने खादी पहनी है? कितनी बहनें सूत कातती हैं? सरकार दरबारकी सत्ता भले ही छीन ले; परन्तु आप तो ढसामें रहते हुए उन्हींका हुक्म बजायें। यदि आप सरकारको

१. दरबार गोपालदास, सौराष्ट्रकी रियासत ढसाके शासक, जो कांग्रेसमें शरीक हो गये थे।