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भाषण: ढसामें

लगान देते हुए भी दूसरे हुक्म दरबारके ही मानें तो क्या दरबार पदच्युत हो सकते हैं? राम जब बनवासको निकले थे तब सारी प्रजाने उनके साथ जानेकी जिद की थी, तपस्या की थी। भरत जैसे भाईने नन्दीग्राममें तप किया था और रामचन्द्रजीकी चरणपादुका सिंहासनपर रखकर उन्हींका ध्यान किया था। आप बताएँ तो आपने क्या किया है? यदि आदेश बोरसदसे दिये जायें और आप उनका पालन करें तो दरबार साहब आपको फिर मिल जायेंगे। यह कैसे हो उसे आप सुनें।

हर पुरुष और स्त्री खादी पहने, चरखा चलाये, अन्त्यज हाथकता सूत ही बुनें और खादी पहनें, महाजन अन्त्यजोंपर रोष न करें, उनकी पानी आदिकी असुविधाएँ दूर करें। और उन्हें अस्पृश्य न मानें--आप पहले इतना करें, फिर मुझसे पूछे कि दरबार साहब कहाँ हैं? आपके दरबार आयें या न आयें, परन्तु मैं तो हिन्दुस्तानके स्वराज्य संग्रामको छोड़कर आपके पास आ जाऊँगा और आपके साथ तपस्या करूँगा।

आप हाथपर-हाथ धरे किसकी राह देख रहे हैं? आपने एक बार मेरे पास आकर दरबार साहबके प्रति जो प्रेमभाव व्यक्त किया था, वह सब कहाँ गया? आप कहते हैं कि काठी लोग हमारे खेतोंको जानवरोंसे चरवा देते हैं। क्या दरबारने आपसे यह नहीं कहा था कि आप अपने खेतोंकी हिफाजत रखें। ब्रिटिश सरकार भी इस बातकी इजाजत देती है कि आप अपने खेतोंको नुकसान पहुँचानेवाले चोरों-डाकुओं और जानवरोंको मारकर बाहर निकल दे। आप ऐसे अपंग क्यों हो गये हैं? आपने अपनी सभी प्रतिज्ञाएँ क्यों तोड़ डाली हैं?

खैर जो हुआ सो हुआ। आज भी क्या आप लोग जहाँसे भूले हैं, वहाँ लौटनेके लिए तैयार हैं? आपने तो दरबारको पगड़ी और जर्क-बर्क पोशाक पहने देखा था। आज तो वे मोटी खादीका कुरता पहनते हैं, टोपी तो लगाते ही नहीं और मोटी खादीकी लुंगी बाँधते हैं। आप बतायें कि आप क्या करेंगे? क्या आपने अपनी पगड़ी छोड़ी है? क्या पगड़ी छोड़ देनेसे आपकी मर्दानगी चली जायेगी। आपने ऐसा कौन-सा काम किया है जिससे मैं आपको इस लायक समझूँ कि आपके दरबार साहब आपके पास वापस बुलाये जायें? फिर भी आज एक वर्षकी आप प्रतिज्ञा करें। अन्त्यज शराब और मांस छोड़ दें, विदेशी सूत बुनना छोड़ दें, विदेशी कपड़ेका त्याग करें। सब लोग सूत कातें और हाथ कते सूतका बुना कपड़ा पहनें, विदेशी कपड़े जलाएँ नहीं तो बाँध कर रख लें और यदि इस तरह एक साल बीतनेपर मैं अपनी प्रतिज्ञाका पालन न करूँ तो आप मेरा सिर काट लें और अपने उन्हीं कपड़ोंको फिर पहनना शुरू कर दें। आप लोगोंमें से हर एकके घरमें चरखा जरूर हो। आपको पूरे कपड़े न मिले तो आप लंगोटी ही पहनें, वह भी न हो तो खादीका एक टुकड़ा ही कमरमें बाँधे, अन्त्यजोंको अपनायें, जो पानी ईश्वरने आपको दिया है वहीं उन्हें भी सुलभ करें; नहीं तो यह समझ लें कि पृथ्वी रसातलमें चली जायेगी। जिन गड्ढोंका पानी, आप स्वयं पीनेके लिए तैयार नहीं हैं, उनका पानी उन्हें पिलाने की बात न करें।

इतना सीधा और अपने स्वार्थका काम करके देखें। और यदि दरबार साहब फिर भी न आयें तो मुझे लिखें। मैं असहयोगी हूँ-फिर भी मैं सरकारसे प्रार्थना करूँगा कि वह ढसाके दरबार साहबको ढसामें वापस भेज दे। अगर वे फिर भी न भेजे गये