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२५४. भाषण: पालीताणामें [१]

३ अप्रैल, १९२५

माननीय ठाकुर साहब, भाइयो और बहनो,

मैं इस अभिनन्दन-पत्रके लिए आप सबका आभार मानता हूँ। यह अभिनन्दन-पत्र मुझे ठाकुर साहबके हाथोंसे दिया गया है, मैं इसे अपने लिये और भी अधिक सम्मानकी बात समझता हूँ। अभिनन्दन-पत्रमें मेरी प्रशंसा अनेक प्रकारसे की गई है। लेकिन यह सब मेरे लिए अब कोई नई बात नहीं रही है। मैं जहाँ-कहीं जाता हूँ, वहीं देखता हूँ कि अभिनन्दन-पत्रोंमें अलग-अलग ढंगसे एक ही तरहकी बातें कही जाती है। जब मैं इनको सुनता हूँ तब मेरी इच्छा ईश्वरसे यही प्रार्थना करनेकी होती है कि इन अभि-नन्दन-पत्रोंमें जो-कुछ कहा गया है वह सब किसी दिन सच हो जाये।

मैं आपको एक बात और, जो बात अभिनन्दन-पत्रमें नहीं आई है, बता दूँ। अभिनन्दन-पत्रमें बातके केवल एक ही पहलूका उल्लेख किया गया है, लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि उसका दूसरा पहलू भी है। मैं यह देखता हूँ कि जो लोग मेरी प्रशंसा करते हैं, और ऐसे समारोहोंमें भाग लेते हैं, वे लोग उन्हीं आदशोंकी ओरसे उदासीन रहते हैं जिनका आरोप वे मुझमें करते हैं। मैं जहाँ-कहीं जाता हूँ, वहाँ आलोचना करना ही मेरे हिस्सेमें आता है, लेकिन मैं इससे बच नहीं सकता। मैं न जनताकी अपने प्रति अन्ध-भक्ति चाहता हूँ और न राजा-महाराजाओंकी विनययुक्त बातें। ये बातें कर्णप्रिय जरूर लग सकती हैं, लेकिन मैं तो राजा और प्रजाके बीचकी कड़ी बनना चाहता हूँ। यदि मैं उन दोनोंको एक-दूसरेके निकट ला सकूँ और उन्हें एक-दूसरेके विचार समझा सकूँ तो मैं मानूँगा कि मेरा कर्त्तव्य पूरा हो गया। मैंने अंग्रेजोंके साथ भी ऐसा ही सम्बन्ध रखा है। मेरा हेतु यह है कि मैं अंग्रेजों और भारतीयोंको एक-दूसरेके निकट लाऊँ। यदि मुझे प्रजाका पूरा सहयोग नहीं मिलेगा तो मैं इस कार्यको पूरा न कर सकूँगा। मैं "राजाका" सहयोग मिलनेकी बात नहीं कहता, क्योंकि मैं स्वयं प्रजा हूँ। और प्रजा ही रहना चाहता हूँ। इसी कारण मैं जनताके कष्टों और विचारों को अधिक अच्छी तरह समझ सकता हूँ और उससे अधिक सहयोग की भी अपेक्षा कर सकता हूँ। इसलिए मैं लोगोंसे कहता हूँ कि वे मेरी जिस बातकी प्रशंसा करते हैं, उसपर आचरण करें।

मैंने अक्सर कहा है कि "यथा राजा तथा प्रजा" की उक्ति जिस प्रकार सच है उसी प्रकार "यथा प्रजा तथा राजा" की उक्ति भी सच है। अगर प्रजा सत्यनिष्ठ हो तो राजाके प्रति असम्मानका भाव होना सम्भव नहीं। राजा बुरा नहीं होता; किन्तु अगर प्रजा आलसी और अनियन्त्रित हो तो अच्छेसे-अच्छा राजा भी क्या कर

१. अभिनन्दन-पत्रके उत्तरमें।