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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सकता है, आप इसपर विचार करें। हमारे ऋषि-मुनियोंने जिस अच्छेसे-अच्छे राजाकी कल्पना की है वह है जनक। राम तो अवतारी पुरुष होनेके कारण ईश्वर माने गये हैं। इसलिए वे राजाके रूपमें आदर्श नहीं माने जा सकते। लेकिन कवि कालि [१]दासने जनकमें सभी राजोचित गुण बताये है। किन्तु जनककी प्रजा जनककी वृत्तिके अनुरूप न होती तो राजा जनक क्या कर सकते थे? इसी प्रकार यदि आज जनता राजासे सहयोग न करे तो राजा क्या कर सकता है? मैंने त्रावणकोरमें देखा है कि अगर प्रजा अपना कर्त्तव्य पूरा करे तो महारानी भी अपने कर्त्तव्यका निर्वाह कर लेंगी। लेकिन यदि प्रजा विरुद्ध हो तो महारानी कितनी भी इच्छुक क्यों न हों, कोई सुधार नहीं कर सकतीं। अगर आज मैं अकेला ही अस्पृश्यताको त्यागनेकी प्रतिज्ञा करूँ तो उससे कोई लाभ न हो सकेगा। मैं आपको ये सब बातें ठाकुर साहबकी उपस्थितिमें बता रहा हूँ। इसमें मेरा थोड़ा-सा स्वार्थ है। आज आपने मेरी प्रशंसा की है, लेकिन अगर आप कल इसे कार्य रूप देने के लिए कुछ न करें और मैं आपको उसके लिए उलाहना दूँ तो आप मुझे बरदाश्त नहीं करेंगे। मैं ऐसे मामलोंमें राजाकी अपेक्षा प्रजासे अधिककी अपेक्षा करता हूँ। आलसी और शराबी प्रजासे कोई राजा क्या करा सकता है? मैंने ठाकुर साहबसे शराब-खोरीके बारेमें बातचीत की थी। उन्होंने मुझे कहा कि यहाँ शराबका ठेका तो दूर, चायकी दुकान भी नहीं है; लेकिन फिर भी ऐसे लोग हैं जो चोरीसे शराब मँगाकर पीते हैं। जहाँ ऐसी स्थिति हो वहाँ राजा क्या कर सकता है? क्या कोई राजा किसी मनष्यकी बुरी लत छुड़ा सकता है? उससे तो इतनी ही अपेक्षा की जा सकती है कि वह अपनी जनताको भ्रष्ट करने में योग न दे।

इसलिए जबतक काठियावाड़के लोग अपने कर्त्तव्यका पालन न करेंगे तबतक कुछ नहीं किया जा सकता। इसके बिना, हम जिस समृद्धिकी आकांक्षा करते हैं उसे प्राप्त करना असम्भव है। काठियावाड़में समृद्धि लानेके लिए मैं प्रजासे अधिक अपेक्षा रखता हूँ। अगर हम जनताकी सहायता पा सकें तो हमें राजाकी भी सहायता मिल जायेगी। मैं आपसे भिक्षामें यही माँगता हूँ। एक समय था जब मैं धन माँगता था और लोग खुशी-खुशी धन देते थे। मुझे बहनोंने अपने गहने उतार-उतार कर दिये हैं और लोगोंने हीरे और मोती। लेकिन आज मैं दूसरी ही चीज माँगता हूँ और वह है आचारमें परिवर्तन। मैं चाहता हूँ कि हमारे आचार-दोष दूर हो जायें; लेकिन मुझे यह चीज नहीं मिलती। धन आप दे सकते हैं। मैं यह थैली देने के लिए आपका आभारी हूँ। इसका उपयोग तो किया ही जायेगा; लेकिन मुझे इससे सन्तोष अवश्य ही न होगा।

आपमें दयाकी भावना होनी चाहिए। पालीताणा जैन तीर्थस्थलोंमें एक पवित्र और महान तीर्थ है, लेकिन यहाँके लोगोंने दूसरोंको वह पाठ अभी नहीं सिखाया है जो उन्हें सिखाना चाहिए था। यहाँकी बहनोंको देखकर मुझे प्रसन्नता नहीं हुई, उलटे दुःख हुआ। ये बहनें दया-जैसे सामान्य धर्मको भी नहीं समझतीं। काठियावाड़

१. यहाँ वाल्मीकि होना चाहिए।