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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

पहनते तबतक मेरी आत्माको शान्ति न मिलेगी, क्योंकि गरीबीके उन्मूलनका इसके अलावा और कोई उपाय नहीं है। चूँकि चरखेके सिवा दूसरा कोई रास्ता नहीं है; इसलिए मैं चरखेको कामधेनु कहता हूँ और उसे तलवारसे अधिक मानता हूँ। रामने अपने धनुष-बाणका त्याग नहीं किया, लेकिन विश्वामित्रके लिए समिधाएँ लाकर दीं। उन्होंने ऐसे काम किये जिसे साधारण लोग करते थे। राजा जबतक प्रजाके हृदयको जीत नहीं लेता तबतक उसके समस्त अंगोंको अच्छी तरह नहीं समझ सकता। जो प्रजाके लिए नितान्त आवश्यक हो वह काम राजाको अवश्य करना चाहिए। यही कारण है कि इंग्लैंडके राजाओंके लिए नौसेनामें प्रशिक्षण लेना अनिवार्य रखा गया है। राजा जॉर्जने नौसेनामें काली काफी पी है और पनीर खाया है। इंग्लैंडका राजा प्रजाके गुणोंको ग्रहण करता है। चूँकि इंग्लैंडके लोगोंमें ऐसे गुण हैं इसलिए उनका राजा सुख भोगता है। उनमें जो दुर्गुण हैं वे निकल जायें तो उनका राजा चिर सुखी हो जाये। हम नहीं कह सकते कि वे इन दुर्गुणोंका त्याग कब कर सकेंगे। लेकिन जब वे ऐसा करेंगे तब सारी दुनिया उनके गुणोंको देखेगी; और उनकी कद्र करेगी। मैं चाहता हूँ कि हमारे राजा भी उन लोगोंके गुणों और साहसका अनुकरण करें। मैं चाहता हूँ कि हम अपनी न्यूनताओंपर विजय पायें। उनके वकील और प्राध्यापक युद्धके दिनोंमें अपने हाथमें सुई धागे लेकर गाऊन सिया करते थे। मेरी भरती आहतोंकी शुश्रूषाके लिए की गई थी। जो लोग बेल्जियम और फ्रांसके मोर्चांपर नहीं जा सकते थे उनके जिम्मे कमसे-कम यह काम तो था ही। उन्होंने इस कामको इतना आसान बना दिया था कि एक अनाड़ी आदमी भी उतने ही गाऊन सी सकता था जितने कोई काम सीखा हुआ आदमी। मैं ऐसे बहुतसे उदाहरण दे सकता हूँ। यदि आपने अभिनन्दन-पत्र में जो कहा है वह सब सही हो तो आपको स्वयं भी इन गुणोंको ग्रहण करनेका प्रयत्न करना चाहिए।

आप लोग इतने सुस्त क्यों हो गये हैं? अन्त्यज बस्तीमें मिलके सूतका उपयोग क्यों किया जाता है? क्या पालीताणामें इतना सूत नहीं काता जा सकता? मैं नहीं चाहता कि आप अहमदाबादकी मिलोंको प्रोत्साहन दें। मैं तो चाहता हूँ कि आप अच्छीसे-अच्छी खादी खुद तैयार करें।

मैंने अन्त्यज शाला देखी और उसे देखकर मुझे बहुत दुःख हुआ। पूरी शालाके लिए एक भी अच्छा अन्त्यजेतर शिक्षक नहीं मिला। यह किसका दोष है? क्या ठाकुर साहबका? आप अपनी जातिको धर्मनिष्ठ मानते हैं। लेकिन क्या आपमें ऐसा एक भी आदमी नहीं है, जो इस कामको करनेके लिए तैयार हो? मैं तो यही आशा करता हूँ कि ब्राह्मण और वैश्य वहाँ जायेंगे और कहेंगे कि इस शालामें पढ़ानेके लिए हम तैयार हैं। उस शालामें पीनेका पानी भी नहीं मिलता। ठाकुर साहब, यह काम भी आपका है। आपकी प्रजाको पानी क्यों नहीं मिलता? ये लोग नदीके सूखे पाटमें गड्ढे खोद-खोदकर बड़ी ही कठिनाईसे पानी निकालते हैं। धर्मशालाओंमें भी कुएँ हैं। लेकिन अन्त्यज उनसे पानी नहीं भर सकते। यह कहाँका धर्म है कि राहगीरोंको तो पानी मिल सकता है; लेकिन अन्त्यजोंको नहीं? उनकी फिक्र कौन करता है? उनके प्रति दया रखनेका दावा कौन करता है? आप लोग अपने-आपको हिन्दू कैसे कह सकते हैं?