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पालीताणामें जैन मुनिसे बातचीत

आजकल जैसी अस्पृश्यता बरती जा रही है उसके लिए धर्ममें कोई स्थान नहीं है। मैंने शास्त्रोंपर विचार किया है और मैं शुद्ध मनसे अपने अन्तरमें काफी सोच-विचार करने के बाद इसी निष्कर्षपर पहुँचा हूँ कि आज हम हिन्दू धर्मका व्यवहारतः जिस रूपमें पालन करते हैं उसका वही रूप उसके विनाशका कारण साबित होगा। मैं इसीलिए कहता हूँ कि आप सब चेत जायें। हिन्दू धर्मकी रक्षा करना राजा और प्रजा दोनोंका काम है। हिन्दू धर्मको सुधारनेका एक मात्र उपाय अन्त्यजोंकी सेवा करना है। हम आत्मशुद्धि किये बिना अपने पापोंका प्रक्षालन नहीं कर सकते। इसलिए आपसे निवेदन है कि आप अन्त्यजोंको अपने साथ रखें, जैसे साफ-सुथरे होकर आप यहाँ आये हैं, आप उन्हें भी वैसे ही साफ-सुथरे रहने के साधन दें और वे इसके बाद भी साफ-सुथरे न रहें तब कहें कि अन्त्यज स्वच्छ नहीं हैं, इसलिए अस्पृश्य हैं। लेकिन मैं जानता हूँ कि ऐसे हजारों अन्त्यज हैं जो उतनी ही सफाईसे रहते हैं जितनी सफाईसे मैं रहता हूँ। उनमें सभी शक्तियाँ हैं और कोई त्रुटि नहीं है। हम उनमें जो त्रुटि देखते हैं उसका पाप हमपर ही है। इसी कारण मैं आपसे कहता हूँ कि आप इस प्रश्नको अपने हाथमें लें और इस शालामें सेवा करने के लिए अर्जी दें। एक व्यक्तिने १५० रुपया वेतन माँगा है। लेकिन इतना ज्यादा वेतन कैसे दिया जा सकता है? आप जीवनयापनके लिए जितना जरूरी हो उतना माँगें और कलसे ही अन्त्यज शाला चालू कर दें। अपनी गन्दगी धोकर उसे अपने पड़ोसमें फेंक देना अनुचित है।

[गुजरातीसे]
महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ७

२५५. पालीताणामें जैन मनिसे बातचीत [१]

३ अप्रैल, १९२५

गांधीजीने पूछा:

क्या इसका अर्थ यह है कि लालन चरम अहिंसाके पालनका दावा छोड़े बिना चरखा नहीं चला सकते? उसमें अहिंसा धर्मका त्याग किस प्रकार होता है, यह बात मैं नहीं समझ सका हूँ। यह बात समझमें आ सकती है कि साधुका गृहस्थकी भाँति अपने स्वार्थके लिए कोई काम करना उचित नहीं है, किन्तु वह दूसरोंकी भलाईके लिए तो चरखा अवश्य चला सकता है। उदाहरणके लिए साधु रातमें बाहर नहीं आता। किन्तु कल्पना करें कि किसी पड़ोसीके घरमें आग लग जाती है, तब साधु घरमें ही

१. गांधीजी मुनिश्री कर्पूर विजयजीसे पालीताणामें मिले थे। पण्डित लालन गांधीजीके साथ गये थे। उन्होंने मुनिश्रीसे पूछा था, कोई जैन मुनि चरखा चलाये, क्या इसमें कोई आपत्तिकी बात है? मुनिश्रीने उत्तर दिया, हाँ है। जो मुनि परम अहिंसाका पालन करता है, वह चरखा नहीं चला सकता। इसपर उनसे गांधीजीने बातचीत आरम्भ की। यह बातचीत महादेव देसाईके लेख "काठियावाड़में तीसरी बार" से उद्धृत की गई है।