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कातनेवालोंकी कठिनाइयाँ

मानवकी दृष्टिसे दूर किसी गुफामें पड़ा रहता हो, उसकी बात दूसरी है। वह चाहे तो युगधर्मका पालन न करे। उसके अतिरिक्त जो साधु-संन्यासी समाजमें रहते हैं और उनके बीच अपना निर्वाह करते हैं उनसे तो मैं यही कहूँगा कि मैंने त्रावणकोरमें थियाओंके [१] संन्यासी गुरुसे [२] यह कहा कि वे जो खादी पहने बिना आये उसे शिष्य न बनायें। इससे उनके पास भीड़भाड़ भी कम हो जायेगी। मैं आपसे भी यही चाहता हूँ। इससे ढोंगियोंको प्रोत्साहन मिल सकता है; किन्तु इस प्रकार क्या श्रीमद् राजचन्द्रके आसपास भी ढोंगी लोग दिखाई नहीं देते थे? लोग ढोंगी बन जायें तो इससे हमारी कोई हानि न होगी। उससे उन्हींकी हानि होगी।

मुनिश्री: मैंने इस सम्बन्धमें इतने सूक्ष्म रूपसे विचार नहीं किया है। मैं विचार करनेके पश्चात इस सम्बन्धमें आपसे चर्चा करूँगा।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, १२-४-१९२५

२५६. कातनेवालोंकी कठिनाइयाँ

बम्बईके एक चरखा प्रेमीने चरखा प्राप्त करने में होनेवाली कठिनाइयोंके बारेमें लिखा है। वे कहते हैं कि बड़ी कठिनाईसे उन्हें चरखेकी एक दुकानका पता चला। वहाँ ढाई घंटा बरबाद करने के बाद उन्हें एक चरखा मिला। उसकी कीमत साढ़े चार रुपये चुकाई; पर घर जाकर देखा कि उसका भी तकुआ टेढ़ा है। उसे चलानेकी कोशिश करें तो वह उछलता, चलनेका नाम नहीं लेता। वह अब भी ठीक तरह नहीं चलता है और अब ये भाई पूछते हैं कि क्या किया जाना चाहिए। दूसरे भाई लिखते हैं कि एक जगह स्थायी रूपसे रहता हूँ तो कताई अच्छी तरह कर लेता हूँ; लेकिन जब इधर-उधर जाना होता है तब कताई नहीं कर पाता, क्योंकि चरखा हर जगह नहीं मिलता।

दोनोंकी कठिनाई वास्तविक है, और नहीं भी है। जिन्हें चरखेका पूरा ज्ञान है उन्हें तो बम्बईवाले उक्त भाईकी तरह कठिनाई नहीं होगी, क्योंकि वे खराब चरखेको ठीक कर सकते हैं। तकुआ तो वे अपने साथ भी रख सकते हैं। लेकिन जिस प्रकार प्रत्येक कातनेवालेको इस विषयमें पूरी निपुणता प्राप्त कर लेनी चाहिए, उसी प्रकार हरेक कांग्रेस कमेटीके कार्यालयमें चरखे और चरखेका सारा सामान ठीक हालतमें रहना चाहिए। अगर वह ऐसा नहीं करती तो जिन भाइयोंको घरखेके प्रति उत्साह है लेकिन जिन्हें उसको सुधारना नहीं आता है, वे तो बैठे ही रह जायेंगे। दूसरे भाईकी कठिनाई भी कांग्रेसके पदाधिकारी लोग दूर कर सकते हैं। ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि जो लोग कातना चाहें, वे कांग्रेस कमेटीमें जाकर कात सकें। पाँच-सात चरखे तो कांग्रेसके छोटे-छोटे कार्यालयोंमें भी चलने चाहिए।

१. मद्रासकी एक अस्पृस्य मानी जानेवाली जाति।

२. नारायण स्वमी।