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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लेकिन इन तमाम कठिनाइयोंका निवारण तकली कर सकती है। जिन्हें तकली पर कातना आता हो, वे तो एक तरहसे अपने चरखेको अपनी जेबमें रखे हुए चाहे जहाँ जा सकते हैं। मुझे अपनी त्रावणकोर यात्रामें तकली एक अमूल्य चीज लगी। उसे मैं बाँसकी एक नलीमें रखकर, जहाँ जाता हूँ, साथ ले जाता हूँ। उसकी कीमत तो कुछ भी नहीं है, लेकिन इसकी उपयोगिता असीम है। इसलिए हर कातनेवालेको मेरी सलाह है कि वह अपने साथ तकली तो रखे ही। उसपर भले ही एक घंटे में पचीस गज ही सूत काता जा सके, लेकिन चूँकि उसका इस्तेमाल चाहे जहाँ और जब चाहे तब किया जा सकता है, इसलिए उसकी उपयोगिता बहुत बड़ी है। यही कारण है कि यद्यपि इसपर प्रति घंटे कम सूत तैयार हो पाता है, फिर भी यह चरखेसे होड़ करती है। और गरीबोंके लिए तो यह सौभाग्यवती बहन-जैसी है।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, ५-४-१९२५

२५७. दो वार्तालाप

बहुतसे विद्यार्थी मुझसे तरह-तरहकी बातें पूछते हैं। कुछ तो मुझे परेशान भी करते हैं; कुछ शान्तभावसे पूछपाछ कर चले जाते है। इधर कुछ दिनोंमें दोनों तरहके वार्तालाप हुए हैं। वे देने योग्य हैं, इसलिए यहाँ दे रहा हूँ:

पहला वार्तालाप [१]

मैं रेलमें बैठा था। मद्राससे लौट रहा था और थका हुआ था। बहुतसा लिखनेका काम पड़ा हुआ था; उसे पूरा कर रहा था। इतने में गाड़ी एक स्टेशनपर खड़ी हुई। एक विद्यार्थी इजाजत लेकर डिब्बेमें आया; उसने अपनी पढ़ाई हाल हीमें खतम की थी। उसने अन्दर आकर मुझसे पूछा:

'आप वाइकोमसे आ रहे हैं?'

'हाँ।'

'वाइकोममें क्या हुआ?'

मुझे यह सवाल ठीक नहीं लगा; अतः मैंने पूछा, 'आप कहाँ रहते हैं?'

'मैं मलाबारका हूँ।'

उसके हाथमें दो अखबार थे। मैंने पूछा, 'आप अखबार पढ़ते हैं?'

'मुझे सफर करना पड़ता है। कैसे पढ़ सकता हूँ?'

'आपके हाथमें 'हिन्दु' जो है। उसमें वाइकोमके समाचार मिलेंगे।'

'परन्तु में तो आपसे जानना चाहता हूँ।'

'आपकी तरह यदि सब लोग मझसे पूछे और सभीको जवाब देना पड़ तो मेरे पास दूसरे काम करने के लिए समय ही न बचे। क्या आपने इस बातपर विचार किया है?'

'पर आप मुझे तो वहाँका हाल बता ही सकते हैं।'

१. यह वार्तालाप २५ मार्च, १९२५ को, जब गांधीजी बम्बई जा रहे थे, गुण्टकल स्टेशनपर हुआ था।