'आप 'यंग इंडिया' पढ़ते हैं ?'
'नहीं, मुझे इसे पढ़नेका समय ही नहीं मिलता। मैं 'टाइम्स' पढ़ता हूँ, क्योंकि मुझे वह मिल जाता है।'
'तब मैं आपको अपना समय नहीं दे सकता। आप न 'हिन्दू' पढ़ते हैं और न 'यंग इंडिया'। तब भला मैं दस मिनिटमें अचानक हई इस भेंटमें आपको क्या हाल बताऊँ? आप मुझे माफ करें।'
'तब क्या आप मुझे नहीं बतायेंगे?'
'मुझे माफ करें। आप खादी भी नहीं पहनते; और मुझे व्यर्थ परेशान करते हैं।'
'परन्तु मुझे हाल बताना आपका कर्त्तव्य है।'
'खादी पहनना आपका कर्तव्य है।'
'मेरे पास रुपया नहीं है।'
'आप तो सोनेके बटन पहने हुए हैं। इन्हें मुझे दे दें, मैं आपके लिए खादीकी व्यवस्था कर दूँगा।'
'बटन तो मैं शौकिया पहनता हूँ। उन्हें मैं क्यों दे दूँ?'
'तब आप मुझे माफ करें।'
'अच्छा यदि मैं खादी न पहनूँ तो आप मुझे हाल न बतायेंगे?'
'आप खुशीसे ऐसा मान लें, पर अब मेरा पीछा छोडें।'
'आप यही क्यों नहीं कहते कि आप मुझे नहीं बताना चाहते।'
'अच्छा ऐसा ही सही।'
'पर आपके इस व्यवहारको मैं अखबारोंमें प्रकाशित करूँगा।'
'खुशीसे करें; पर अब आप मुझे अपना काम करने दें।'
'मुझसे जितना होता है, मैं उतना करता हूँ। मैंने मलाबार कोषके लिए कोई सौ-एक रुपये भी एकत्र किये थे।'
'क्या फिर भी आपका जी गरीब लोगोंकी बुनी खादी पहनने के लिए नहीं होता?'
'क्या यह मुझे ज्ञात नहीं है कि जब वहाँ लोग भूखों मर रहे हैं तब आपको कातनेकी सूझी है?'
'यह चर्चा हमें यहाँ नहीं छेड़नी चाहिए।'
'तब मैं जाऊँ?'
'हाँ जरूर। अब तो जायें।'
मुझे अन्देशा है कि मैं इस भाईको यह नहीं समझा सका कि जिस बातको वह आसानीसे अखबारोंमें पढ़ सकता है उसे जाननेके लिए मुझे सवाल पूछकर उसे मेरा अर्थात् देशका समय नहीं लेना चाहिए। उसके जाने के बाद मेरे मनमें विचार आया कि यदि मैंने उसके साथ गंभीरतासे पेश आनेके बजाय विनोदसे काम लिया होता तो मैं उसे खुश कर सकता था। हाँ, मेरा वक्त जरूर कुछ ज्यादा जाया होता। मुझे लगता है कि अपनी गंभीरता तथा उससे उत्पन्न हुई कठोरताके कारण मैंने एक सेवक गँवा दिया। अहिंसा धर्म कितना कठिन है? हम चाहे कितने ही कार्य-व्यस्त हों, फिर भी हमें सावधान रहना चाहिए। हमें प्रतिक्षण अपनी बातें सुननेवाले या देखने-