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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

वालेके हृदयमें प्रवेश करनेका प्रयत्न करना चाहिए। अहिंसा धर्मके पालनके लिए समय और सुविधाका क्या प्रश्न? सुविधा हो या न हो, समय हो या न हो, अहिंसावादी तो दास है, सेवक है और सेवाके लिए तो वह संसारके हाथ बिक चुका होता है। मैंने अपना समय बचाया, अपनी सुविधाका खयाल किया, शिक्षक बननेका प्रयत्न किया और शिक्षा देते हुए शिष्यको खो दिया। मैं कैसा शिक्षक हूँ? विवेकहीन मनुष्य पशुके बराबर है। तुलसीदास तथा सब संतोंका यही मत है।

दूसरा संवाद

जिसका मैं शिक्षक बनने गया वह मेरा शिक्षक बना। इस घटनाने मुझे सावधान बना दिया। मैं दूसरे सेवकको गँवाना नहीं चाहता था और सावधान था। यह विद्यार्थी पंजाबी था। पंजाबी जितने मिले हैं, सब विनयी ही मिले हैं। इस विद्यार्थीके विनयकी सीमा न थी। इसलिए मुझे अपनी सावधानी काममें भी नहीं लानी पड़ी।

'कोई पाँच सालसे मैं आपके दर्शन करनेकी कोशिश कर रहा था। आज मनोरथ पूरा हुआ।'

'भले आये। कुछ खास बात पूछनी है?'

'यदि इजाजत हो तो एक दो बातें अपने चिन्तनके लिए पूछना चाहता हूँ।'

'शौकसे पूछें।'

'क्या आप मानते हैं कि मैं चरखेके द्वारा अपनी आजीविका प्राप्त कर सकता है?'

'नहीं। मैंने आप-जैसोंके लिए आजीविकाके साधनके तौरपर चरखेकी सिफारिश नहीं की है। आप-जैसोंके लिए तो सूत कातना बतौर एक यज्ञके है।'

'तब मुझे क्या करना चाहिए?'

'यदि मैं आपको समझा सकूँ तो मैं जरूर कहूँगा कि आप निर्वाहके लिए रुई धुनने और कपड़ा बुननेका काम करें। इन्हें आप सीख भी आसानीसे सकते हैं।'

'पर उनसे मैं अपने कुटुम्बका पालन कर सकूँगा?'

'हाँ, यदि सब लोग उस काममें हाथ बँटावें।'

'यह मुझ-जैसेके कुटुम्बके लिए असंभव है। आप देखते ही हैं कि मैं खादी पहनता हूँ। कातता भी हूँ। मैं उसका कायल भी हूँ। पर अपने कुटुम्बियोंमें उसके प्रति विश्वास कैसे पैदा कर सकता हूँ? और विश्वास हो जाये तो भी वे इस कामको करनेके लिए तैयार न होंगे।'

'आपकी इस कठिनाईको मैं अच्छी तरह समझ सकता हूँ। फिर भी आप और मुझ-जैसे अनेक लोगोंको अपना रहन-सहन बदलना होगा। नहीं तो हमारे देशके सात लाख गाँवोंके नसीबमें निराशा ही बदी है।'

'मैं इस नीतिको समझता हूँ; पर उसके ग्रहण करनेकी शक्ति मुझमें आज नहीं है। ऐसा आशीर्वाद दीजिए कि वह मुझमें आ जाये। परन्तु तबतक मुझे क्या करना चाहिए?'

'इसकी खोज करना आपका और आपके बड़ोंका काम है। मैंने अपना आदर्श आपके सामने रख दिया है।'