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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अथवा नेता धोखेबाज निकले तो इससे यह नहीं माना जा सकता कि सभी धोखेबाज हैं। सैकड़ों असहयोगी बड़े-बड़े प्रलोभनोंके सामने भी नहीं डिगे हैं। सैकड़ों स्नातक किसी भी सरकारी-परीक्षामें नहीं बैठे हैं और मुसीबतें झेलकर भी हिम्मत नहीं हारते। अत: मेरे पछतानेका कोई कारण नहीं है।

खादी पहननेवाले सभी ढोंगी और धोखेबाज हैं, ऐसा कहना तो विचारशून्यताका परिचय देना है। मैं तो चाहता हूँ कि जहाँ जाऊँ, खादीकी सफेद टोपी देखूँ। [१] लेकिन मुझे ऐसा तो कहीं दिखाई देता नहीं। जो सफेद टोपियाँ देखता हूँ, उन्हें पहननेवाले सभी धूर्त हैं, यह मान लेनेका लेशमात्र भी कारण नहीं। उन्हें मैं जानता तो हूँ नहीं। सम्भव है, बहुत-सोंको जीवनमें शायद एक बार ही देख पाऊँ। ऐसे लोगोंका क्या स्वार्थ हो सकता है कि वे सिर्फ मुझे संतोष देनेके लिए खादी पहनें? शायद उनका मंशा ऐसा ही हो, फिर भी उसे ढोंग तो नहीं माना जा सकता।

असहयोगकी योजना जनताकी नब्ज टटोले बिना तैयार नहीं की गई थी। मझ खादीका मंत्र नब्ज टटोले बिना ही नहीं मिल गया था। अगर आज कोई कार्यक्रम दृढ़ताके साथ चल रहा है तो वह है खादी और चरखेका कार्यक्रम। मुझे तो नहीं मालूम कि यहाँ आज ऐसा कोई दूसरा राष्ट्रीय कार्यक्रम चल रहा है, जिसमें इतने कार्यकर्त्ता काम कर रहे हैं और शुद्ध ढंगकी कमाई कर रहे हैं। ज्यादा हो या कम, इतना जरूर है कि यह कार्यक्रम प्रगति कर रहा है। गरीब लोगोंने इसे बहुत उत्साहसे आगे बढ़कर स्वीकार न किया हो, मगर वे इसे पसन्द तो करते ही हैं। वे अन्तरप्रेरणासे ही जानते हैं कि यह कार्यक्रम सच्चा है, पोषक है और व्यापक है।

ये सज्जन लिखते हैं कि कताईका कार्यक्रम चलनेवाला नहीं है। इसलिए इसे छोड़ देना चाहिए और कताई मताधिकारकी शर्तके रूपमें भी नहीं रखनी चाहिए। मैं उक्त कारणोंसे इसे छोड़ दूँ यह नहीं हो सकता। मुझे मताधिकारकी शर्तके रूपमें इसे वापस लेनका अधिकार ही नहीं है। अगर कांग्रेस वर्षके अन्तमें वैसा करना चाहे तो कर सकती है। लेकिन पत्र-लेखक महोदय मुझे तो तब भी खादी और चरखेका पुजारी ही देखेंगे।

पत्र-लेखकका कहना है कि सिर्फ खादीसे ही स्वराज्य मिलनेवाला नहीं है। मैंने कभी ऐसा कहा भी नहीं है कि अकेले उसीसे स्वराज्य मिल जायेगा; लेकिन मैंने यह अवश्य कहा है और फिर कहता हूँ कि उसके बिना स्वराज्य नहीं मिल सकता। यह कहना ठीक नहीं है कि हम खादीका उपयोग कर रहे थे, किन्तु फिर भी स्वराज्य खो बैठे। सचाई यह है कि हमने पहले खादी खोई और फिर स्वराज्य। यदि हम खादीको फिर अपना लें, तो स्वराज्य लानेका भी अवसर आ जायेगा। फिर, जब हमने अपना स्वराज्य गँवाया तब हम यह नहीं जानते थे कि खादीमें स्वराज्यको कायम रखनेकी खूबी है। लेकिन अब हम इस सचाईको जान गये हैं। अगर हमें यह जानकारी न हो कि मजबूत फेफड़ेवाले लोग खूब चल सकते हैं तो सम्भव है कि हम फेफड़ोंकी

१. पत्र लेखकने लिखा था कि गांधीजी जहाँ-कहीं जाते हैं वहाँ खादी टोपियाँ देखकर गलत धारणा बना लेते है।