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नगद पैसा दे; लेकिन यह सुझाव अस्वीकार कर दिया गया था। कारण बताते हुए कहा गया था कि यदि सदस्य बननेकी इच्छा रखनेवाले लोग दूसरोंसे सूत प्राप्त करनेकी तकलीफ भी न उठायेंगे तो सदस्यताको सुत-सम्बन्धी शर्तका कोई मतलब ही न रह जायेगा। लेकिन इसके बावजूद पैसा लेकर सदस्य बनाये जायें तो इसे आश्चर्य ही माना जायेगा। सच तो यह है कि अगर कताई-सदस्यताको सफल बनाना हो तो कांग्रेस कमेटियोंको केवल ऐसे लोगोंको ही सदस्य बनानेकी कोशिश करनी चाहिए जो खुद कताई करते हों। अगर कोई खरीदा हुआ सूत देकर सदस्य बनना चाहे तो उसका नाम अवश्य दर्ज किया जाये, लेकिन अगर कांग्रेस नई योजनाको सफल बनाना चाहती है तो खुद कातनेवालोंको ही बढ़ावा देनेका प्रयत्न करना चाहिए। ऐसा किया जाये या न किया जाये, किन्तु पैसा लेकर सदस्य बनाना तो कांग्रेसके संविधानका उल्लंघन करना है।

खादी न पहननेवाले लोग

कांग्रेसमें मताधिकार प्राप्त करनेके लिए कांग्रेसका काम करते समय तथा इसी प्रकारके दूसरे अवसरोंपर खादी पहनना अनिवार्य है। फिर भी, ऐसा जान पड़ता है कि कुछ जगह सदस्य खादी नहीं पहनते। मेरी दृष्टिमें तो यह भी कांग्रेसके नियमके विरुद्ध है। मेरी समझमें नहीं आता कि यदि हम अपने ही बनाये नियमोंका पालन न करेंगे तो स्वराज्य किस तरह मिल सकेगा। कोई यह तर्क दे सकता है कि कांग्रेसका जो नियम पसन्द न हो, उसे न मानना ठीक ही है। लेकिन ऐसा कहना ठीक नहीं, क्योंकि यदि हर आदमी पसन्द न आनेवाले नियमोंकी अवहेलना करने लगे तब तो कोई किसी भी नियमका पालन नहीं कर पायेगा और इस प्रकार पूरा संविधान अर्थात् तन्त्र ही नष्ट हो जायेगा। नियम बन जानेसे पहले उसका भरपूर विरोध किया जा सकता है, लेकिन मंजूर होनेके बाद उसको भंग करना तो अव्यवस्था उत्पन्न करने-जैसा होगा। कोई ऐसा न समझे कि मेरी यह दलील सविनय अवज्ञाके विरुद्ध जाती है। ऐसा सोचना ठीक नहीं है; सविनय अवज्ञा तो तब की जाती है। जब अवज्ञा न करना अनैतिक हो। लेकिन, यहाँ तो अनीतिकी कोई गुंजाइश ही नहीं है। खादी पहनना अनीतिका विषय नहीं है। खादी पहनना अनैतिक है, ऐसी दलील तो मैने आजतक किसीसे नहीं सुनी।

अब सवाल यह उठता है कि अगर कोई सदस्य खादी न पहने होनेपर भी सभामें आकर बैठ जाये और उसकी कार्रवाईमें भाग भी ले तो उस हालतमें क्या किया जाये। उस हालतमें अध्यक्ष उससे विनम्रतापूर्वक कह सकता है कि वे सभासे चले जायें। अगर सदस्य उसकी बात न माने तो वह उसे बोलनेसे रोक सकता है। उसका मत तो किसी भी हालतमें नहीं गिना जाना चाहिए। पूछा जा सकता है कि ये विचार मैं कांग्रेसके अध्यक्षकी हैसियतसे व्यक्त कर रहा हूँ या अपनी व्यक्तिगत हैसियतसे। अध्यक्षकी हैसियतसे कोई विचार व्यक्त करनेका मेरा इरादा ही नहीं है। अगर इस नियमपर कभी निर्णय देनेका अवसर आयेगा तो वह निर्णय देनेकी भी मेरी कोई इच्छा नहीं है। मेरा विचार है कि मैं इस निर्णयको तो कार्य-समितिपर