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२६२. भाषण: लाठीमें

५ अप्रैल, १९२५

कलापीकी [१] लाठी रामजीभाईकी [२] लाठी कैसे हो गई? ऐसा किस कारण हुआ? रामजीभाईमें क्या हीरा जड़ा है? नहीं, बात सिर्फ इतनी ही थी कि जब कोई भी हाथसे कता सूत बुननेके लिए तैयार नहीं था तब उन्होंने इस काममें पहल की और वे तथा गंगाबहन आगे आये। इसमें उन्होंने क्या खोया? आज उन्हें सारा गुजरात जानता है। उन्होंने काशी विश्वनाथतक जाकर लोगोंको खादी बुनना सिखाया; वे मुझसे मिलने पूना भी गये थे। इन्हें इतनी प्रतिष्ठा केवल एक टेकके कारण, हाथसे कते सूतको बुननेकी टेकके कारण मिली। गंगाबहन तो अपने पतिसे अच्छी खादी बुनती हैं। ये अन्त्यज हैं, फिर भी मैं इनकी पूजा करता हूँ, क्योंकि ये प्रौढ़ा बहिन पवित्र हैं और अपनी प्रतिज्ञाका पालन करती हैं। आप लोगोंने एक मन्दिर बनवानेकी माँग की है। [३] इसमें आपको इस सम्बन्धमें कोई प्रोत्साहन न दूँगा और प्रबन्धक महोदयसे भी कहूँगा कि वे आप लोगोंको बेकारकी बातोंमें बढ़ावा न दें। आज अगर आपके लिए लाख रुपयेकी माँग करूँ तो मुझे लाख रुपये मिल जायेंगे; लेकिन मैं माँगूँ क्यों? मन्दिर बनवाना हो तो आप खुद ही बनवायें। मैं आपकी शारीरिक सुख-सुविधाकी व्यवस्था करूँगा; लेकिन अपनी आत्माकी भूख मिटानेका उपाय तो आपको खुद ही करना चाहिए। मैं आपके लिए मन्दिर बनवा दूँ और फिर आप शराब पीकर उसमें नाचें, यही न? धोराजीमें मैं लोगोंको ऐसा ही करते देख आया हूँ। अत: अगर आपको सचमुच मन्दिरकी जरूरत हो, तो आप उसको बनवानके लिए अपने खून-पसीनेकी कमाईमें से पैसा दें, रामजीभाईसे पैसा देनेके लिए कहें, और जब एक अच्छी खासी रकम जमा हो जाये तो प्रबन्धकसे भी उतनी ही रकम देनेकी प्रार्थना करें। अगर आप इतना करें तो आपके लिए इन दोनों रकमोंके बराबर धन-राशि जमा करके मैं आपको दे दूँ। अगर आपको सचमुच ऐसे मन्दिरकी जरूरत होगी तो आप सौ बार ऐसा करेंगे। पूजारी तो ऐसे आदमीको ही रखें जो खरा वैष्णव हो। फिर मन्दिरके लिए तीन न्यासी होने चाहिए---एक तो मन्दिरके प्रबन्धक अथवा जब ठाकुर साहब गद्दीपर आ जायें तो ठाकुर साहब, दूसरा मैं और तीसरा कोई आपके द्वारा नियुक्त व्यक्ति। जबतक व्यवस्था ठीक रहेगी, तबतक मन्दिर आपके अधीन रहेगा, अन्यथा आपके हाथोंसे ले लिया जायेगा।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, १२-४-१९२५

१. सौराष्ट में लाठी नामकी एक रियासत थी। वहाँ के महाराजा सुरसिंहजी गोहिल एक अच्छे कवि भी थे और उनका उपनाम "कलापी" था। लाठी रियासत कलापीकी लाठीके नामसे प्रसिद्ध थी।

२. एक बुनकर; देखिए आत्म कथा, भाग ५, अध्याय ४०।

३. अन्त्यज स्कूलके शिक्षकोंने गांधीजीके सामने स्कूलकी रिपोर्ट पेश करते हुए अन्त्यजोंके लिए एक मन्दिर बनवानेका सुझाव रखा था।