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सम्पूर्ण गांधी वाड़्मय

नहीं छोड़ते तबतक दारू छोड़ना फलदायी न होगा। मैं तो चाहता हूँ कि आप दारू पीना छोड़ें और आपके पास पड़ोसमें जो लोग रहते हों वे भी मांस-दारू इत्यादि छोड़ें। इन चीजोंको सारा संसार छोड़े; किन्तु झूठे अन्धविश्वाससे नहीं। क्योंकि इस प्रकार किया गया संकल्प ज्यादा दिन नहीं टिकेगा। हम एक पापको दूसरे पापसे निवृत्त नहीं कर सकते। मैं चाहता था कि मैं आपके इस अन्धविश्वासको दूर करूँ और आपको यह बात समझाऊँ कि आप दारू मेरे नामपर न छोड़ें, बल्कि यह समझ कर छोड़ें कि दारू छोड़ना अच्छा है। आपको कोई भी धोखा दे जाता है, इसका कारण तो आपका अज्ञान है। मैंने आपके स्वयंसेवकोंसे कहा है कि वे आपको इस अज्ञानमें से धैर्यपूर्वक मुक्त करें। मैं आज भी उनको यही सलाह देता हूँ। आप अच्छी तरह सोच-समझकर कदम उठायें और दूसरोंको भी ऐसा ही करनेके लिए कहें।

आपने इसमें अपने पारसी भाइयोंका दोष बताया है। मैं तो पारसी जातिपर मग्ध हैं। यह जाति छोटीसी है; किन्तु इसने बड़ा नाम कमाया है। इसमें बहुत गुण हैं, किन्तु इसमें दुर्गुण भी हैं। किन्तु आज तो बहुतसे पारसी भाई और बहन दारू छोड़ रहे हैं। इसमें शक नहीं है कि उनमें से बहुत-से दारू पीते भी हैं। पारसी दारू बेचनेका व्यवसाय करते हैं। वे इसके लिए पाप करते हैं और अत्याचार भी करते है। किन्तु मैं उनसे क्या कहूँ? वे आपको लालच देते हैं, इनाम देते हैं और घूस भी देते हैं। मैं उनसे क्या कहूँ? यदि यह धन्धा मेरा हो तो मैं भी यही करूँ। पेटके लिए लोग सब-कुछ करते हैं। 'पेट ढुलाये भार, पेट बाजा बजवाये'। इसीलिए मैं यह भाषण दे रहा हूँ, लेख लिख रहा हूँ और फिर मुझे इसका सम्पादन भी करना होगा। मैं चाहता हूँ कि जैसे भी हो, आपमें जीवनका संचार हो।

आय जैसी शिकायत पारसियोंके विरुद्ध करते है वैसी ही मेरी शिकायत आप लोगोंके विरुद्ध भी है। आपका एक समुदाय है जो यह कहता है कि जो दारू नहीं पीता वह पाप करता है। आप इससे लड़कर नहीं, बल्कि अपनी शपथ और प्रतिज्ञापर दृढ़ रहकर बच सकते हैं। आप पारसियोंसे कह दें, हमने दारू छोड़ दी है और अब आप भी यह धन्धा न करें। कई पारसी मेरे मित्र हैं। उनमें इंजीनियर, डाक्टर, वकील और व्यापारी भी हैं। इनमें एक बुद्धिशाली और उदार व्यापारी था। उसने बहुत पैसा दिया था और एक आश्रम भी बनवाया था। मान लें कि मैं पारसी जातिको समझाने में समर्थ हो जाता हूँ। किन्तु कल कोई दूसरा आयेगा। ईसाई, मुसलमान, यहूदी, हिन्दू--कोई भी आ सकता है और आपसे कह सकता है कि आप दारू पियें, तब मैं इन सबको कैसे समझाऊँगा? इसलिए इसका सच्चा उपाय तो यह है कि मैं आपको ही समझाऊँ और आप स्वयं भी समझें।

मैं गायकवाड़ और वांसदा सरकारसे निवेदन करता हूँ कि वे अपने राज्योंकी सीमाओंमें शराबकी दूकानें बन्द कर दें। किन्तु राजाओंको समझाना बहुत कठिन काम है। फिर भी मैं प्रयत्न करूँगा। किन्तु वे भी पारसियों-जैसे ही हैं, इसलिए उनको समझानेमें सफल होना कठिन है। यह उनका भी धन्धा है और इससे उन्हें बहुत राजस्व मिलता है। किन्तु आप तो उनकी प्रजा अथवा उनके पुत्र कहे जाते हैं। मेरा