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भाषण: माँगरोलकी सार्वजनिक सभामें

अपने मनमें प्रसन्न होता हूँ। मुझसे जब भी पूछा गया है कि आपका पेशा क्या है तब मैंने यही जवाब दिया है कि मैं किसान हूँ और जुलाहा हूँ; परन्तु मैंने निगमके अभिनन्दन-पत्रके उत्तरमें इससे आगे बढ़कर कहा था, "मैं भंगी हूँ।" ऐसी अवस्थामें जिन्हें मैं अपना मानता हूँ उन्हें आप दूर खड़ा रखें और मुझे अपनी गोदमें बिठाना चाहें, यह कैसे हो सकता है? आप मेरी स्तुतिमें तो 'गीता' के श्लोक गायें और मैं उन्हें दूर खड़ा रखूँ, यह कैसे हो सकता है? पर आपने मेरी जो स्तुतिकी है यदि वह सच हो और जो मेरा गुणगान किया है वह सच हो तो हम लोग जहाँ बैठे हुए हैं हमें उन बालिकाओंको भी वहीं बिठाना चाहिए। हाँ, इससे आप लोगोंके दिलको चोट पहुँचेगी, आप कहेंगे कि यह रंगमें भंग करनेके लिए कहाँसे आ गया? इसलिए जिस तरह उन्हें दूर खड़ा देखकर मेरे दिलको चोट पहुँची है उसी तरह उन्हें यहाँ आया देखकर आपके दिलको भी चोट पहुँचे तो आप मुझे वैसा कहें। अबतक हम प्रस्ताव तो बराबर पास करते जाते हैं। मैंने आपके स्वागत समारोहमें मेहराबोंपर अस्पृश्यता-निवारण सूचक सूत्र भी पढ़े हैं। ये या तो आडम्बर-मात्र हैं या आपकी कमजोरीके सूचक हैं। इस अवसरपर मेरा यह कर्त्तव्य है कि मैं आपकी इस कमजोरीको दूर करूँ। मैं इसीलिए कहता हूँ कि आप अपने दिये हुए इस अभिनन्दन-पत्रको वापस ले लें, या मझे इन ढेढ़ोंके पास जाकर बैठने दें। यदि आप सच्चे दिलसे यह चाहते हों कि अन्त्यज भाई और बहन आपके साथ आकर बैठें तो ऐसा कहें। मेरा धर्म है अहिंसा और आपका धर्म भी वही है। अहिंसाका सिद्धान्त हर धर्ममें है। हाँ, व्यवहारमें उसके पालनके परिमाणमें अलबत्ता भेद है। इसलिए मैं आपको किसी भी तरह दुःखी करना नहीं चाहता। यदि आप मेरा लिहाज करके ढेढ़ोंको यहाँ आने देंगे तो इससे मेरे अहिंसा धर्मका लोप होगा। मेरा लिहाज करके नहीं, बल्कि आपको हजार बार गरज हो और आपका विश्वास हो कि मैंने जो धर्मकी रक्षा करनेकी बात आपसे कही है वह सच है, अतः आपको माननी चाहिए तो आप अन्त्यजोंको यहाँ आने दें। यदि आप उनके यहाँ आनेके खिलाफ भी हाथ ऊँचा उठायेंगे तो मुझे दुःख न होगा। तब मैं लम्बी साँस लेकर अपने मनमें यही कहूँगा "हाय! लोग हिन्दू धर्मको कब और कैसे समझेंगे?" अतएव जिसकी जैसी इच्छा हो निडर होकर भी बिना किसीका लिहाज किये हाथ उठाये।

मेरे लिए अब धर्म-संकट आ खड़ा हुआ है। अन्त्यजोंको अलग रखनेके हामी सज्जनों की संख्या बहुत थोड़ी है, मैं उनसे नम्रतापूर्वक कहता हूँ कि वे सभासे चले जायें। यदि मेरी बात उनकी समझमें न आती हो और उन्हें उससे दुःख होता हो तो बेहतर है कि मैं ही अन्त्यजोंमें जा बैठूँ।

हम यहाँ सभाके न्यायके अनुसार व्यवहार नहीं कर सकते। बेहतर है कि आप मुझे ही अन्त्यजोंमें जाकर बैठने दें।

आपको दुःख न होना चाहिए। आपने पहलेसे तो यह सूचना निकाली ही न थी कि सभामें अन्त्यज शामिल किये जायेंगे। आपने उन सबको अलहदा बैठाया और यदि मैं न बोला होता तो वे वहीं बैठे रहते। इसलिए मैं समझता हूँ कि ऐसे समय