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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

चार्य भी कहते हैं कि छ: करोड़ लोगोंका अन्त्यज होना असम्भव है। [१] ये सज्जन मानते हैं कि मैं अज्ञानकी बातें कर रहा हूँ, किन्तु मैं मानता हूँ कि वे अज्ञानकी बातें कर रहे हैं। अब इसका फैसला कौन करे? इसका फैसला हमारी मृत्युके बाद ही हो सकता है। मैं स्वीकार करता हूँ कि मैं अपूर्ण मनुष्य हूँ। मैं सत्यकी जो व्याख्या करता हूँ उसपर स्वयं नहीं चल पाया हूँ, अन्यथा क्या मुझे इतनी बहस करनी पड़ती। यदि मुझमें पूर्ण अहिंसा व्याप्त हो तो इन भाईमें वैरभाव हो सकता है और इन्हें क्रोध आ सकता है? [२] भाई, मैं तो कहना चाहता था कि मेरी अहिंसा अधूरी है, क्योंकि आपको क्रोध आ गया है। पर यदि आपकी बात सच हो कि आपको क्रोध नहीं आया तो इससे यह सिद्ध होता है कि मुझमें थोड़ी-बहुत अहिंसा है और मैं मानता हूँ कि मुझमें थोड़ी अहिंसा जरूर है। मैं जो बातें कह रहा हूँ वे प्रेमकी बूँदें हैं, शत-प्रतिशत खरी है। [३] यहाँ कोई भी मर्यादा छोड़कर न बोले। मेरे हकमें राय देनेवालोंका दुहरा कर्त्तव्य है कि वे इस भाईकी बातोंको बरदाश्त करें। मैंने जो इतनी बातें कही हैं वे अपने पक्षमें मत देनेवालोंको शान्त करने तथा विरोधियोंको समझानेके लिए कही है। परन्तु यह काम क्या कहीं एक दिनमें हो सकता है? मैं तो इतना ही कहूँगा, जबतक हम अपने हृदयको शीशेकी तरह साफ न करें हमें तबतक स्वराज्य नहीं मिल सकता।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, १९-४-१९२५

२६४.टिप्पणियाँ

प्रान्तीय मन्त्रियोंसे

मुझे आशा है कि प्रान्तीय मन्त्री सदस्यतामें प्राप्त सूतके विवरणपत्र और जिनमें कताई सदस्यताके अमलपर प्रकाश डाला गया है, ऐसे अन्य विवरण भी कांग्रेसके महा मन्त्रिके तथा 'यंग इंडिया' के कार्यालयको प्रति सप्ताह भेजते रहेंगे। कांग्रेस संगठनोंके लिए नये मताधिकारके उद्देश्यको सफल करना बहुत ही आसान है। किन्तु उनसे आशा की जाती है कि वे उसे अमलमें लाने और सफल बनानेका हार्दिक प्रयत्न करेंगे। इस कार्यका एक-मात्र या मुख्य उद्देश्य यह नहीं है कि केवल सदस्योंके नाम सूचीमें चढ़ा लिये जायें। सदस्योंकी संख्याको यथावत् बनाये रखनेके लिए निरन्तर ध्यान देने और संगठनको लगातार अधिक अच्छा बनानेकी आवश्यकता है। जो लोग अबतक कांग्रेसके दानपात्रोंमें कुछ आने या रुपये डालकर अपना मन समझाते आये है कि राष्ट्रके प्रति उनके कर्त्तव्यकी इतिश्री हो गई; उनके लिए दिन-प्रतिदिन राष्ट्रके बारेमें ही सोचना और उसके लिए श्रम करना, चाहे वह प्रतिदिन आधे घंटेका ही क्यों न हो,

१. यहाँ गांधीजीको सभामें बैठे एक मनुष्यने टोका।

२. उक्त व्यक्तिने यहाँ कहा, 'मुझे तो क्रोध नहीं आया है, मैं तो शान्तिसे ही बोल रहा हूँ'।

३. यहाँ आलोचकने गांधीजीको फिर टोका।