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एक क्रान्तिकारीके प्रश्न

देश-प्रेमी हैं? क्या आप कुछ ऐसे स्वराज्यवावी, नरमदली या राष्ट्रवादी लोगों के नाम जनताके सामने रखेंगे जो अपनी मातृभूमिके लिए शहीद हुए हों? यह ऐतिहासिक तथ्य है कि क्रान्तिकारियोंने भारतकी सेवाका दम भरनेवाले किसी भी अन्य दलसे अधिक त्याग किया है। क्या आप इस तथ्यसे इनकार करनेका साहस या दुराग्रह कर सकते हैं? आप अन्य दलोंके साथ तो समझौता करनेके लिए हमेशा तैयार रहते हैं, पर हमारे दलके लोगोंसे घृणा करते हैं और उनके भावोंको 'जहर' बताते हैं। ईश्वर और मनुष्यकी निगाहमें जो हमसे निश्चय ही हीन हैं ऐसे किसी अन्य दलके लोगोंकी भावनाओंके लिए वैसे ही असहिष्णुताभरे शब्दोंका प्रयोग करते हुए क्या आपकी छाती नहीं धड़केगी? आप उन्हें 'भ्रान्त देशभक्त' और 'जहरीले साँप' कहनमें संकोच क्यों करते हैं?

मैं भारतके क्रान्तिकारियोंको अन्य लोगोंकी अपेक्षा कम स्वार्थत्यागी, कम उदात्त या कम देश-प्रेमी नहीं मानता। परन्तु मैं आदरपूर्वक कहता हूँ कि उनका वह त्याग, उनकी यह उदात्तता और उनका यह देश-प्रेम व्यर्थ प्रयास ही नहीं है, बल्कि अज्ञानमूलक और भ्रान्त भी है, अतः उनसे देशकी दूसरी तमाम हलचलोंकी अपेक्षा अधिक हानि पहुँचती है और पहुँची भी है; क्रान्तिकारियोंकी कार्रवाइयोंसे देशकी प्रगति रुकी हुई है। वे अपने दुश्मनोंकी जानकी बिलकुल परवाह नहीं करते। इससे ऐसे दमनका सूत्रपात हुआ है कि जिसके फलस्वरूप लड़नके उनके तरीकेमें शरीक न होनेवाले लोग पहलेसे अधिक भीरू हो गये हैं। दमन केवल उन्हीं लोगोंको फायदा पहुंचाता है जो उसके लिए तैयार रहते हैं। परन्तु क्रान्तिकारियोंकी कार्रवाइयोंके फलस्वरूप जो दमन होता है, लोग उसके लिए तैयार नहीं हैं; और वे उस सरकारके हाथ अनजाने ही मजबूत करते हैं, जिसे क्रान्तिकारी उखाड़ फेंकना चाहते हैं। मेरा यह पक्का विश्वास है कि यदि चौरी-चौराका हत्याकाण्ड न हुआ होता तो बारडोलीमें जो प्रयोग किया जा रहा था, उससे अन्तमें स्वराज्य मिल जाता। यह मेरा अपना मत है और इसीके कारण यदि में क्रान्तिकारियोंको भ्रान्त और भयानक देशभक्त कहता हूँ, तो इसमें आश्चर्य ही क्या है? कल्पना करें कि कुछ वैद्य मेरा इलाज कर रहे हैं और मुझे उनके इलाजके तरीकेसे निस्सन्देह नुकसान होनेके बाद भी मुझमें इतना प्रबल संकल्प-बल और सामर्थ्य नहीं कि मैं उनका इलाज बन्द कर दूँ। अब मेरा लड़का जो मेरी शुश्रूषा करता है, अपने अज्ञान और मेरे प्रति अन्धप्रेमके कारण उन चिकित्सकोंसे लड़ जाता है और अपनी जानसे हाथ धो बैठता है, अवश्य ही मैं अपने ऐसे बेटेको अपना गुमराह और खतरनाक तीमारदार कहूँगा। उसके उस व्यवहारका परिणाम यह होगा कि मैं अपने उस लड़केसे हाथ धो बैठूँगा और वैद्योंकी नाराजी मोल लूगाँ सो अलग; इतना ही नहीं, सम्भव है वैद्य अपने बेटेके उक्त कार्यमें मेरा हाथ होनेका सन्देह करें और अपनी हानिकर चिकित्साको जारी रखनके साथ-साथ मुझे दण्डित करनेकी बात भी सोचें। यदि मेरा बेटा उन वैद्योंको उनकी गलतीका यकीन करा सकता या मुझे समझा सकता कि उनसे इलाज कराना मेरी कमजोरी है तो उसके