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एक क्रान्तिकारीके प्रश्न

मैं नहीं मानता कि उसमें स्थूल युद्धका वर्णन या उसकी प्रेरणा है। कुछ भी हो, इस श्लोकके अनुसार तो सर्वज्ञ ईश्वर ही दुष्टोंके विनाशके लिए पृथ्वीपर अवतार लेता है। मैं हर क्रान्तिकारीको सर्वज्ञ ईश्वर या अवतार नहीं मान सकता। इसके लिए मुझे क्षमा किया जाये। मैं यूरोपकी हर चीजको बुरा नहीं कहता। हाँ, मैं यह जरूर कहता हूँ कि अच्छे कामोंके लिए गुप्त हत्याओं और अनुचित विधियोंका सहारा लेना सर्वत्र और सर्वदा निन्दनीय है।

क्या मैं आपके श्री चरणोंमें यह निवेदन करूँ कि क्रान्तिकारी लोग भारतका कमसे-कम इतना भूगोल तो जानते ही हैं कि "भारत कलकत्ता और बम्बई नहीं है।" परन्तु हम इसी तरह यह भी मानते हैं कि मुट्ठीभर सूत कातनेवालोंसे मिलकर ही भारत राष्ट्र नहीं बन जाता है। हम देहातमें प्रवेश कर रहे हैं और सर्वत्र सफल हो रहे हैं। क्या आप यह नहीं समझ पाते कि शिवाजी, प्रताप और रणजीतसिंहके सपूत हमारी भावनाओंको किसी अन्य बातकी अपेक्षा अधिक तत्परता और गहराईसे समझ सकते हैं? क्या आपका खयाल यह नहीं है कि किसी भी राष्ट्र के लिए--विशेषतः भारतके लिए--एक राक्षसी और घृणित व्यवस्थाका सशस्त्र और षड्यन्त्रमूलक प्रतिरोध, उद्योगहीन और दार्शनिक भीरुताके प्रसारसे अधिक अच्छा है? मेरा आशय उस भीरुतासे है जो भारतभरमें फैल रही है और जिसका कारण आपका अहिंसाके सिद्धान्तका प्रचार या उसकी गलत व्याख्या और उसका गलत प्रयोग कहें तो ज्यादा ठीक है। अहिंसा कमजोर और लाचार आदमीका नहीं, ताकतवर आवमीका सिद्धान्त है। हम देशमें ऐसे लोग पैदा करना चाहते हैं जो किसी भी समय और किसी भी रूपमें मृत्यु आये तो उससे न डरें--जो नेक काम करें और मरें। हम गाँवोंमें इसी भावनाको लेकर प्रवेश कर रहे हैं। हम परिषदों और जिला बोर्डोके लिए मत माँगने नहीं, बल्कि देशकी खातिर ऐसे बलिदानी साथी खोजने जा रहे हैं जो अज्ञात रहकर अपने प्राण दे सकें। क्या आप मैज़िनीकी तरह यह मानते हैं कि शहीदोंके खूनसे विचार जल्दी परिपक्व होते हैं?

कलकत्ता और रेलवे स्टेशनोंसे दूरस्थ गाँवोंका भौगोलिक अन्तर जानना ही काफी नहीं है। यदि क्रान्तिकारी इन दोनोंके बीच रहनेवाला आधारभूत अन्तर जानते होते तो वे मेरी तरह सूत कातनेवाले बन जाते। मैं स्वीकार करता हूँ कि थोड़ेसे सूत कातनेवालोंसे जो हमारे पास हैं, भारत राष्ट्र नहीं बनता, परन्तु मेरा दावा यह है कि पहलेकी तरह सारे हिन्दुस्तानसे फिर सूत कतवाना सम्भव है और जहाँतक सहानुभूतिका सम्बन्ध है, अब भी इस प्रवृत्तिके साथ लाखोंकी सहानुभूति है; और वे क्रान्तिकारियोंका साथ कभी न देंगे। मुझे क्रान्तिकारियोंके इस दावेपर शक है कि वे देहातोंमें सफल हो रहे हैं, परन्तु यदि वाकई यह बात सच हो तो वह दुःखका विषय है। मैं उनके उद्योगको विफल करने में कुछ उठा नहीं रखूँगा। किसी शैतानी व्यवस्थाके मुकाबले में सशस्त्र षड्यन्त्र रचना मानो शैतानके मुकाबले शैतान खड़ा करना है।


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