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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

पर चूँकि एक ही शैतान मेरे लिए बहुतसे शैतानोंके बराबर है, इसलिए मैं उसकी संख्या न बढ़ने दूँगा। मेरी प्रवृत्ति उद्योगहीन है या वह उद्योगमय है, यह तो आगे चलकर मालूम होगा। यदि तबतक उसके फलस्वरूप एक गजकी जगह दो गज सूत कते तो उससे उतना हित तो होगा ही। भीरुता चाहे दार्शनिक हो, चाहे किसी दूसरी तरहकी, मैं उससे घृणा करता हूँ। यदि मुझे यह विश्वास हो जाये कि क्रान्तिकारियोंकी कार्रवाइयोंसे भीरुता दूर हो गई है तो इससे गुप्त साधनोंके प्रति मेरी घृणा बहुतकुछ कम हो जायेगी, चाहे सिद्धान्तकी दृष्टिसे मैं उनका कितना ही विरोधी फिर भी क्यों न बना रहूँ। लेकिन यह बात तो कोई सरसरी नजरसे देखनेवाला भी जान सकता है कि अहिंसात्मक आन्दोलनके कारण देहाती लोगोंमें ऐसा साहस आ गया है जो कुछ साल पहले उनमें नहीं था। निस्सन्देह मैं मानता हूँ कि अहिंसा मुख्यतः सबलका शस्त्र है। मैं यह भी मानता हूँ कि अकसर लोग भूलसे भीरुताको भी अहिंसा मान लेते हैं।

मेरे ये भाई जब यह कहते हैं कि क्रान्तिकारी वह है जो नेक काम करता है और प्राण गँवाता है, तब वे उसी बातको सिद्ध हुई मान लेते हैं जो उन्हें सिद्ध करनी है। मेरी आपत्ति तो इसी बातपर है। मेरी रायमें तो क्रान्तिकारी अहित करता है और मर जाता है। मैं किसीकी जान लेने, हत्या करने या किसीको आतंकित करनेको किसी भी हालतमें अच्छा नहीं मानता। हाँ, मैं यह बात मानता हूँ कि शहीदोंके खूनसे विचार बहुत जल्दी प्रौढ़ होते हैं। परन्तु जो शख्स सेवा करते हुए जंगली इलाके में बुखारसे तिलतिल करके मरता है उसका भी खून निश्चयपूर्वक उसी तरह बहता है जिस तरह फाँसी चढ़नेवालेका। और यदि फाँसी चढ़नेवाला दूसरेका प्राण लेनेका दोषी हो तो उसमें वे प्रौढ़ होने योग्य विचार ही नहीं होते।

क्रान्तिकारियोंके विरुद्ध आपकी एक आपत्ति यह है कि उनका आन्दोलन आन्दोलन नहीं है, इसलिए उनकी लाई हुई क्रान्तिसे लोगोंको बहुत कम लाभ पहुँचेगा। इसका अप्रत्यक्ष अर्थ यह है कि उससे सबसे ज्यादा लाभ हम क्रान्तिकारियोंको होगा। क्या आप सचमुच यही कहना चाहते हैं? क्या आप समझते हैं कि भारतके क्रान्तिकारी ये लोग, जो अपने देशके लिए मरने के लिए सदा तैयार रहते हैं और उसके प्रेममें पागल हो रहे हैं, और जो निष्काम कर्मकी भावनासे प्रेरित हैं, अपनी मातृभूमिको धोखा देंगे और अपने जीवनके लिए, क्षण-भंगुर जीवनके लिए, विशिष्ट स्वत्व प्राप्त करेंगे? सच है, हम जनसाधारणको उसके कमजोर होने के कारण अभी कार्यक्षेत्रमें नहीं घसीटगे; किन्तु तैयारियाँ पूरी हो जानेपर तो हम उन्हें खुले मैदानमें लायेंगे ही। हम मानते हैं कि हम भारतीयोंकी वर्तमान मनोवृत्तिको भलीभाँति समझते हैं; क्योंकि हमें नित्य ही अपने साथ-साथ अपने इन भाइयोंको जाननेका भी अवसर मिलता है। हम जानते हैं कि भारतके लोग आखिर भारतीय हैं। वे स्वतः दुर्बल नहीं हैं; किन्तु उन्हें कार्य-कुशल नेता नहीं मिलते। अतः सतत प्रचार