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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कहने में कुछ भी संकोच नहीं होता कि यदि मैं उनके कालमें और उनके देशमें जन्म लेता तो बहुत सम्भव था कि मैं उन सबको विजयी और वीर योद्धा होनेपर भी भ्रान्त देशभक्त कहता। परन्तु मुझे उनका काजी नहीं बनना चाहिए। इतिहासमें वीरोंके कारनामोंके जैसे ब्यौरे दिये गये हैं, मैं उन्हें नहीं मानता। मैं तो इतिहासकी मोटी बातोंको ही मानता हूँ और उनसे स्वयं अपने मार्गदर्शनके लिए अपने तौरपर सबक निकाल लेता हूँ। यदि इतिहासको ये मोटी बातें जीवनके उच्चतम नियमोंके विरुद्ध जाती हैं तो मैं उनपर आचरण करना नहीं चाहता। परन्तु हमें इतिहाससे जो अत्यल्प सामग्री उपलब्ध होती है, मुझे उसके आधार पर किसीके बारेमें निर्णय नहीं करना है। मरे हुएका तो गुण-कीर्तन ही ठीक है। मैं कमाल पाशा और डी'वेलेराके सम्बन्धमें भी निर्णय नहीं दे सकता। पर जहाँतक उनके युद्ध-सम्बन्धी विश्वासका सम्बन्ध है, वहाँतक वे मुझ-जैसे एक निष्ठावान अहिंसा-धर्मीके जीवनमें मार्गदर्शक नहीं हो सकते। कृष्णको मैं शायद इन लेखकसे भी ज्यादा मानता हूँ। पर मेरा कृष्ण जगनायक, अखिल विश्वका स्रष्टा, संरक्षक और संहारक है। वह संहार भी कर सकता है, क्योंकि वह उत्पत्ति करता है। पर मित्रोंके साथ यहाँ मैं अवश्य ही किसी दार्शनिक या धार्मिक विवादमें पड़ना नहीं चाहता। मैं इस योग्य नहीं हूँ कि अपने जीवन-सम्बन्धी तत्त्वज्ञानकी शिक्षा दे सकूँ। मुझमें अपने अंगीकृत सिद्धान्तोंका पालन करनेकी योग्यता भी मुश्किलसे है। मैं तो एक अति साधारण प्रयत्नरत प्राणी हूँ और मन, वाणी और कर्मसे बिलकुल भला, सच्चा और अहिंसक बनने के लिए लालायित हूँ; किन्तु मैं जिस आदर्शको सत्य मानता हूँ उसतक पहुँचने में सदा विफल रहता हूँ। मैं मानता हूँ और अपने क्रान्तिकारी मित्रोंको यकीन दिलाता हूँ कि यह चढ़ाई बहुत कष्टप्रद है; परन्तु यह कष्ट मेरे लिए निश्चित रूपसे सुखप्रद हो गया है। एक सीढ़ी ऊपर चढ़ता हूँ तो अनुभव करता हूँ कि मेरी शक्ति बढ़ी है और मैं अब अगली सीढ़ीपर पैर रखने योग्य हूँ। पर यह तमाम कष्ट और आनन्द मेरे अपने लिए है। कान्तिकारी लोग चाहें तो मेरे इन सब विचारोंको खुशीसे न मानें। मैं तो उनके सम्मुख केवल एक ही उद्देश्यके लिए काम करनेवाले साथीके रूपमें अपने अनुभव उसी तरह प्रस्तुत करता हूँ, जैसे मैंने अली भाइयोंके और दूसरे कितने ही मित्रोंके सम्मुख प्रस्तुत किये हैं। और मैं उसमें सफल हुआ हूँ। वे मुस्तफा कमाल पाशा और शायद डी'वेलेरा और लेनिनके कार्योंका अभिनन्दन कर सकते और करते हैं; परन्तु वे मेरी ही तरह यह भी मानते हैं कि भारतकी स्थिति टर्की, आयरलैंड या रूसकी जैसी नहीं है और उसमें, सदा नहीं तो कमसे-कम इस समय क्रान्तिकारी आन्दोलनका अर्थ आत्मघात होगा; क्योंकि हमारा देश बहुत विशाल है, उसमें बहुत फूट है, लोग बेहद गरीबीमें डूबे हुए हैं और भयभीत हैं।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ९-४-१९२५