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२७०. विविध

न० डा० क० से

हिंसा और अहिंसाका भेद बताना आसान नहीं है। लेकिन सामान्य रूपसे इतना तो कहा ही जा सकता है कि यह व्यक्तिकी भावनापर निर्भर है। प्रेमभावसे दिया गया संखिया भी कुछ लोगोंके लिए अमृतका काम करता है और लाभप्रद होता है। लेकिन वैरभावसे दिया गया संखिया शरीरको विषाक्त करता है और मनुष्यकी मृत्युका कारण बन जाता है। भगवान् बुद्ध अपनी निर्दोष रानीको छोड़कर चले गये; इससे उन्होंने अपना और जगतका कल्याण किया। उनका यह कार्य प्रेमकी पूर्ण अभिव्यक्ति था। किन्तु, कोई जुआरी अपनी पत्नीको सोती छोड़कर जुआ खेलने चला जाता है तो उसका वह कार्य हिंसा और अज्ञानका ही द्योतक होता है। इन दो दृष्टान्तोंमें तुम्हारे दिये हुए सब दृष्टान्त आ जाते हैं।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, १२-४-१९२५

२७१. राजनीति

काठियावाड़में मेरी यह यात्रा इस वर्ष शायद अन्तिम है। मैं समझता हूँ, मैंने इस वर्ष काठियावाड़की ओर अधिकसे-अधिक, जितना सम्भव हुआ उतना, ध्यान दिया है। उसके सम्बन्धमें जितनी जानकारी प्राप्त कर सकता था मैंने उतनी जानकारी भी प्राप्त की है; लेकिन मैंने उसकी राजनीतिमें प्रत्यक्ष रूपसे कहीं हाथ नहीं डाला। किन्तु यह बात तो शेष भारतके सम्बन्धमें भी कही जा सकती है। सामान्य राजनीतिपर मेरी दृष्टि न हो, ऐसी बात नहीं है। लेकिन मैं मानता हूँ कि लोगोंको अभी स्वयं अपने बीच बहुत-कुछ कार्य करना रहता है।

मैं चरखेको उनके इस कार्यका केन्द्रबिन्दु अथवा आधार मानता हूँ। इसीलिए मैंने अपना सारा ध्यान उसी ओर लगा रखा है। हिन्दुओंके लिए मैं अन्त्यज सेवाको भी उतना ही महत्त्वपूर्ण मानता हूँ; इसीलिए मैंने उसपर भी ध्यान दिया है। गोंडल तथा जामनगरकी राजनीतिके विषयमें मैंने जो-कुछ सुना है, मैं उसके प्रति भी जागरूक रहा हूँ। लेकिन फिलहाल यह काम किसी राजनीतिक सम्मेलनकी मार्फत न तो किया जाना चाहिए और न सम्भव ही है। मैं अपना यह मत व्यक्त कर चुका हूँ और उसपर अब भी कायम हूँ।

अन्त्यज शाला

मैंने अपनी काठियावाड़की इस यात्रामें बोटादको प्रथम स्थान दिया। उसका एक कारण तो यह था कि मैं वहाँको अन्त्यजशालाको पिछली बार ही देखना चाहता