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२७३. भेंट: बॉम्बे क्रॉनिकल के प्रतिनिधसे

बम्बई
[१३ अप्रैल, १९२५ को या उससे पूर्व]

महात्मा गांधीने यह पूछनेपर कि क्या इस बातमें कोई सच्चाई है कि यद्यपि कांग्रेस अधिवेशनको हुए तीन माससे भी अधिक हो गये हैं, उन्होंने जानबूझकर अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीकी बैठक नहीं बुलाई, उत्तर दिया:

यह आरोप निराधार है। मेरे अ० भा० कां० क० की बैठक न बुलानेका सीधा-सा और स्पष्ट कारण यह है कि देशके सामने रखनेके लिए मेरे पास कोई नई नीति या नया कार्यक्रम नहीं है। यह बात भी मेरे सुनने में नहीं आई है कि कोई अन्य सदस्य भी कोई नया कार्यक्रम कमेटीके सामने पेश करनेवाला है। बेलगाँवमें जिस कार्यक्रमकी योजना बनाई गई थी, वह तो बिलकुल ही सीधा-सादा है। उसके लिए तो केवल यही अपेक्षित है कि प्रत्येक प्रान्त उसे कार्यान्वित करने में अपनी पूरी-पूरी शक्ति लगाये। किन्तु यदि किसी सदस्यकी इच्छा हो कि अ० भा० कां० क० की बैठक बुलाई जाये, तो मैं सहर्ष पण्डित जवाहरलाल नेहरूसे कहूँगा कि वे उसका प्रबन्ध करें।

प्रतिनिधिने पूछा: क्या यह सच है कि कोई कमेटी सदस्योंसे चन्देक रूपमें सूतके बदले उसकी नकद कीमत ले रही है?

महात्माजीने उत्तर दियाः

मुझे मालूम है कि कुछ कमेटियाँ ऐसा कर रही है, और मेरी निजी राय है कि यह ठीक नहीं है।

पत्र प्रतिनिधिने कहा: मुझे मालूम हुआ है कि कुछ कमेटियोंके मन्त्री सदस्योंकी ओरसे नकद पैसा लेकर और सूत खरीदकर कमेटियोंको दे देते हैं। क्या इस प्रकारके आचरणमें किसी प्रकारका अनौचित्य है?

महात्माजीने स्पष्ट उत्तर दिया:

मन्त्री ऐसे आचरणको बढ़ावा दे, यह वांछनीय नहीं है।

यह पूछे जानेपर कि स्वराज्यवादी लोग परिषदों और विधान-सभाओंमें जनताका प्रतिनिधित्व करनेका हक नहीं रखते, क्या इस तरह की कोई बात उठाई गई है, महात्माजीन कहा:

मैं तो एक भी ऐसे अपरिवर्तनवादीको नहीं जानता जिसने किसी भी तरीके या किसी भी रूपमें इस प्रश्नको फिर उठानेकी इच्छा जाहिर की हो। यदि कोई सदस्य अ० भा० कां० क० की बैठकमें अब इस प्रश्नको उठाना भी चाहे तो इस समय उसे इस प्रश्नको उठानेका अधिकार नहीं है। ऐसा केवल कांग्रेसके अगले अधिवेशनमें किया जा सकता है।