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भेंट: 'बॉम्बे क्रॉनिकल' के प्रतिनिधिसे

महात्माजीने दास और बर्कनहेडके वक्तव्योंके [१] बारेमें अपने विचार जाहिर करनेका अनुरोध किये जानेपर उत्तर दिया:

मुझे इस सम्बन्धमें कुछ भी नहीं कहना है; मैंने अभीतक इस चर्चा में कोई भाग नहीं लिया है।

अहिंसाके सम्बन्धमें श्री दासके घोषणापत्रका आंग्ल-भारतीयों तथा यूरोपीयोंने जो अर्थ लगाया है, क्या आप उससे सहमत हैं?

नहीं; मैं नहीं समझता कि इसमें उन्होंने इस विषयसे सम्बद्ध अपने पहलेके विचारोंका खंडन किया है। श्री दासने अपने विश्वासको अधिक स्पष्ट रूपमें तथा अधिक निश्चित शब्दोंमें दोहराया-भर है।

संवाददाताने पूछा: अर्ल विन्टरटनके [२]इस सुझावके बारेमें आप क्या कहते हैं कि भारतीयों को अपना कोई भी प्रस्ताव साम्राज्य सरकार तथा ब्रिटिश संसदके सामने विचारार्थ पेश करने से पहले उसपर भारत सरकार तथा स्थानीय सरकारोंका समर्थन प्राप्त कर लेना चाहिए?

मैं तो यह समझता हूँ कि यह इस कथनका एक मीठा तरीका-भर है, इंडिया ऑफिस राष्ट्रवादियों द्वारा रखे गये किसी भी प्रस्तावपर कोई विचार न करेगा। इंडिया ऑफिसका बड़प्पन तो इसमें है कि वह भारत सरकारके समर्थनके बिना भी सभी सुझावोंपर विचार करने के लिए तैयार रहे, फिर चाहे वे क्रान्तिकारियोंकी ओरसे ही क्यों न रखे जायें।

इस समय विभिन्न सम्प्रदायोंको एकताकी क्या सम्भावनाये हैं? महात्माजीने कहा:

मझे अभी जल्दी तो अधिक सफलताके लक्षण दिखाई नहीं देते। मुझे तो यही लग रहा है कि इस प्रश्नको धीरे-धीरे अपने आप सुलझने दिया जाये। कुछ ऐसी बीमारियाँ होती हैं जिनके बारेमें चिकित्सक कहते हैं कि उनको न छेड़ना ही सबसे अच्छा रहता है। उनकी जितनी परवाह की जाये, वे उतनी ही बढ़ती हैं। इस साम्प्रदायिक समस्याने भी, लगता है, इस समय यही शक्ल अख्तियार कर ली है।

[अंग्रेजीसे]
बॉम्बे क्रॉनिकल, १३-४-१९२५

१. ३१ मार्च, १९२५ को ब्रिटिश संसदमें एक प्रश्नका उत्तर देते हुए, लोर्ड बर्कनहेडने चित्तरंजनदासजो आमन्त्रित किया था कि वे क्रान्तिकारी गतिविधियोंसे अपना सम्बन्ध तोड़ लें और भारतमें उत्तरदायी सरकारकी स्थापनाके हेतु हिंसाको दबानेमें सरकारके साथ सहयोग करें।

चित्तरंजन दासने ३ अप्रेलको एक वक्तव्यमें इसका उत्तर देते हुए कहा था कि बंगाल अधिनियम इस बुराईको अन्तिम रूपसे दूर करने में सफल नहीं होगा और वे तबतक कुछ नहीं कर सकते जबतक सरकार स्वयं "अनुकूल वातावरण" नहीं तैयार कर देती; देखिए इंडिया इन १९२५-६, पृष्ठ २-३।

२. उप भारत-मन्त्री। ६ अप्रैलको उन्होंने यह सुझाव अस्वीकार कर दिया था कि वाइसरायके लन्दन पहुँचनेके अवसरपर चितरंजन दास, गांधीजी और अन्य भारतीय नेताओंको विचार-विनिमयके लिए लन्दन बुलाया जाये।