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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हमारी सभा कांग्रेस भवनके मैदानमें इसलिए की गई है कि यदि हमारी सभा चौपाटीमें होती तो वहाँ बड़ी संख्यामें लोगोंके आनेकी आशा नहीं थी। फिर भी मैंने आशा नहीं छोड़ी है; क्योंकि जबतक देशमें सत्याग्रह है तबतक हमें स्वराज्य मिलनेकी पूरी आशा है। केवल एक बात है कि देशमें शान्तिका वातावरण नहीं है, जो आवश्यक है। मेरे विचारसे अपनी सभी निराशाओंके बावजूद हमने गत पाँच वर्षों में कुछ गँवाया नहीं है, बल्कि कुछ-न-कुछ हासिल ही किया है। हिम्मत हारने या हाथपर-हाथ धरकर बैठ जान से काम न चलेगा। जरूरत इस बातकी है कि हम अपना प्रयत्न दुगुने उत्साहसे जारी रखें और यदि हम संघर्षमें जीतने के लिए कृतसंकल्प हों तो ऐसा करना आवश्यक है। यदि कांग्रेसमें सच्चे आदमी १० भी हों तो मुझे उससे पूरा सन्तोष होगा। इसके विपरीत जिनमें कामकी लगन न हो, ऐसे लाखों आदमियोंका होना भी बेकार है। पहले कांग्रेसमें मताधिकारका शुल्क चार आना था और लाखों सदस्य थे, किन्तु तिसपर भी हमें स्वराज्य नहीं मिला। क्योंकि मुझे पूरा विश्वास है कि हमें इन साधनोंसे स्वराज्य नहीं मिलेगा। अतः मैंने मताधिकारको बदल दिया, क्योंकि मैं जानता था कि जबतक थोड़ेसे भी लोग देशके निमित्त त्याग करने के लिए तैयार न हों, तबतक हम अन्तमें विजय प्राप्त करने की आशा कदापि नहीं कर सकते।

हमें मार्गको सभी बाधाओंके बावजूद विजय प्राप्त करनेका निश्चय करना होगा। आप जानते हैं कि सरकार भारतीयोंको आपसमें लड़ाते रहनका निश्चय कर चकी है। किन्तु देशमें ऐसा संकल्प करनेवाले लोग कितने है कि चाहे कुछ भी हो जाये हम आपसमें लड़ेंगे-झगड़ेंगे नहीं? केवल चरखेसे सत्याग्रह करने के लिए पर्याप्त उत्साह मिल सकता है। इसलिए हमें चरखा चलाकर इसकी तैयारी करना है। यदि आप सत्याग्रह करने के इच्छुक हैं तो ऐसा अपनी ही जिम्मेदारीपर कर सकते हैं; किन्तु उससे मेरा कोई सरोकार न होगा। सत्याग्रह क्या है, यह बात में कुछ-कुछ जानता हूँ, क्योंकि में इसका प्रवर्तक हूँ। यदि मैं सत्याग्रह आरम्भ नहीं करता तो इसका कारण यह नहीं है कि मैं सत्याग्रह करना नहीं चाहता; बल्कि उसका दूसरा कारण है, और वह है मेरी यह मान्यता कि देश इसके लिए तैयार नहीं है। जबतक आप उन तीन कामोंको पूरा नहीं करते, जिन्हें करनेके लिए आपसे कहा गया है, तबतक यह नहीं कहा जा सकता कि आप लोग सत्याग्रह के लिए तैयार हैं। यद्यपि व्यक्तिगत सत्याग्रह करना सदैव सम्भव है, फिर भी मेरी धारणा यह है कि देश सामूहिक सत्याग्रहके लिए तैयार नहीं है। ६ और १३ अप्रैल के बीच एक पूरा घटनाचक्र घटित हो गया। मुझे जिस दिन ऐसा लगेगा कि आप सत्याग्रहके लिए तैयार है, मैं उसी दिन सबसे पहले आप लोगोंको सत्याग्रह करने की सलाह दूँगा। किन्तु मैं सरकारको गीदड़ भभकियाँ देने में विश्वास नहीं करता, क्योंकि यह सरकार इस प्रकार गीदड़ भभकियोंमें आ ही नहीं सकती। इस सरकारको बेवकूफ बनाना कठिन कार्य है। अपने बारेमें तो मेरा कहना यह है कि जबतक मेरा उद्देश्य पूरा नहीं होता,