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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

बहुतसे भाइयोंने सफेद टोपियाँ पहन रखी हैं; यह मुझे प्रियकर है। किन्तु उन्होंने टोपियाँ केवल आजकी सभाके लिए ही पहनी हैं, यह मैं नहीं जानता। मैं मानता हूँ कि आपने जब टोपियाँ खादीकी पहनी है तब आपके दूसरे कपड़े भी खादीके होंगे। यदि वे खादीके न हों तो मेरी सलाह है कि आप कपड़े भी खादीके बनवायें। आप जानते ही हैं कि अब बहुत विलम्ब हो गया है। हमें विचार करने में बहुत ज्यादा वक्त नहीं लगाना चाहिए। हमें न विदेशी या मिलोंके कपड़ेका मोह होना चाहिए और न खादीके कपड़े पहनने में शर्म आनी चाहिए। खादी हमें भारी भी नहीं लगनी चाहिए। हमें अपने गरीब कतैयों और बुनकरोंके बनाये हुए कपड़े पहनने में भारी क्यों लगते हैं? यदि हम मोटा सूत कातते हैं तो यह हमारा ही दोष है। जब रुई अच्छी मिलती है और बारीक सूत भी काता जा सकता है तब हम मोटा कपड़ा क्यों पहनें? मैं देख रहा हूँ कि बहनें खादी नहीं पहने हैं। उनको तो विदेशी या मिलोंके बने कपड़ेकी जरूरत नहीं होनी चाहिए। मिलोंका कपड़ा पहनकर यहाँ आना अच्छा नहीं माना जा सकता। यदि आपको ऐसा ही करना हो तब तो फिर मेरा साबरमतीमें जा बैठना ही ज्यादा अच्छा होगा। मैं तो यहाँ लालच लेकर चला आया हूँ। मेरे साथी भी लालचसे प्रेरित हुए थे और उन्होंने यह सोचकर मुझे बुलाया कि शायद मेरे यहाँ आनेसे कोई अच्छा परिणाम निकले। मुझे तो स्वराज्य चाहिए। यह कैसे होगा, यह कोई भी नहीं जानता। किन्तु खादीके बिना जो स्वराज्य होगा वह किसी कामका नहीं होगा, यह आप विश्वास रखें। जबतक खादी न होगी तबतक जीवनमें जो शुद्धता और स्वतन्त्रता चाहिए वह नहीं आयेगी। मैं जानता हूँ कि कुछ खादी पहननेवाले भी पाखण्ड करते हैं और अस्वच्छ होते हैं। किन्तु हमें तो खादी विचारपूर्वक पहननी है। हम जबतक खादी नहीं पहनते तबतक हम धर्म-कर्मके योग्य नहीं बन सकते।

हम जबतक अन्त्यजोंको दूर-दूर रखेंगे तबतक हमें संसार भी दुरदुरायेगा। धर्ममें अस्पृश्यताको कोई स्थान नहीं है। शौच आदिके नियमोंके सम्बन्धमें अस्पृश्यता भले ही रहे। किन्तु किसी मनुष्यको जन्मतः अस्पृश्य मानना पाखण्ड है, अधर्म है और घोर क्रूरता है। जन्मसे मनुष्य अस्पृश्य होता है, ऐसा कहनेवाला व्यक्ति झूठा है।

तीसरी चीज है शराब। कोली और दुबले शराब पीते हैं। आप सोचिए तो कि शराब आपका कितना भयंकर शत्रु है, जो आपको छोड़ता ही नहीं। आपको इसे छोड़ ही देना चाहिए। इसका एक अच्छा उपाय यह है कि आप सुबह-सुबह रामनाम जपें। और रो-रोकर परमात्मासे विनय करें कि वह आपको विदेशी कपड़े, मांसाहार और व्यभिचारसे बचाये। प्रह्लादकी रक्षा ईश्वरने ही की थी। यदि आप ईश्वरको किसी दूसरे नामसे भजते हों तो दूसरे नामसे ही भजें। किन्तु ईश्वरका नाम तो आपको लेना ही चाहिए, इसलिए मैंने आपसे कहा है।

हिन्दू-मुस्लिम एकताके कामको हानि पहुँची है। मैं स्वयं तो हार ही गया हूँ। कल तमाम दिन शौकत अली और शुएब साहब मेरे पास बैठे रहे। मैं उनको यहाँ नहीं ला सका हूँ, क्योंकि ये लोग बम्बईके लोगोंको खिलाफतके सम्बन्धमें जो