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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हो गया तो बात अलग है; नहीं तो मुझे निश्चित किये गये कार्यक्रमके अनुसार अभी ४ से लेकर ६ मासतक भ्रमण और करना है। इसलिए यदि मैं अपने पत्र-प्रेषकोंको समयपर उत्तर न दे सकूँ या दे ही न सकूँ तो वे मुझे क्षमा करें। वे इस बातको समझ लें कि मैं पत्रोत्तर विलम्बसे देता हूँ या बिलकुल दे ही नहीं पाता तो इसका कारण यह नहीं है कि मैं उत्तर देना नहीं चाहता या मुझमें इतना सौजन्य नहीं है।

उपर्युक्त बात उन पत्रोंपर भी लागू होती है जो मुझे 'यंग इंडिया' या 'नवजीवन के सम्बन्धमें मिलते हैं। मैं चाहता हूँ कि मैं इस कार्यमें जितना समय देता हूँ उससे अधिक समय दूँ। किन्तु मैं विवश हूँ। मैं जानता हूँ कि मुझे कई बार महत्वपूर्ण पत्रोंकी भी उपेक्षा करनी पड़ती है। यह व्यस्तता आधुनिक जीवनका एक दोष है। मुझ-जैसे महत्त्वाकांक्षी मनुष्यपर इसका दुगुना असर पड़ता है। मेरे कुछ अत्यन्त प्रिय मित्र मुझे अक्सर सलाह देते हैं कि मैं अपनी कुछ गतिविधियोंको छोड़कर विश्राम करूँ और सन्तोष मानूँ। किन्तु मैं इस कथनकी सचाई प्रतिदिन अनुभव करता हूँ कि मनुष्य परिस्थितियोंका दास है और उसका कुफल भोगता है। यों इस उक्तिमें सचाई आधी ही है। किन्तु यह आधी सचाई इतनी जोरदार है कि इससे विवश होकर मुझे अपने पत्र-प्रेषकोंसे क्षमा-याचना करनी पड़ रही है। किन्तु मैं उन्हें बता दूँ कि मैं अपनेको सुधारनेका और पत्र-व्यवहारके लिए अधिक समय निकालनेका प्रयत्न कर रहा हूँ। मुझे इस बातका प्रयत्न करना होगा कि मैं फिर प्रति सप्ताह एक दिनका नहीं, बल्कि अधिक दिनका मौन रखूँ। मुझे बंगाली मित्रोंसे अपील करनी होगी कि सबसे पहले वे मेरे सफरके कार्यक्रमोंमें कमी करें।

बंगालका दौरा

इस असन्तोषजनक क्षमा-याचनाके बाद मैं बंगाल के दौरेकी बात लेता हूँ। सामने पड़े तारोंसे मालूम होता है कि यह कार्यक्रम पाँच सप्ताह चलेगा। मुझे आशा है कि संयोजकोंने सोमवारका ध्यान रखा होगा। मुझे सोमवारको अनिवार्य रूपसे मौन रखना और सामान्यतः आना-जाना भी बन्द करना पड़ता है। किन्तु मैं चाहता हूँ कि यदि सम्भव हो तो संयोजक बुधवारको भी मेरे मौनव्रतका दिन रख लें ताकि मैं अपना लिखनेका वह सब काम कर सकूँ जो मुझे प्रति सप्ताह करना पड़ता है। मेरी आदत थी कि मैं अपना चरखा अपने साथ ले जाता था। किन्तु मैंने अब यह क्रम बदल दिया है। अतः मेरा अपने मेजबानोंसे यह अनरोध है कि वे मेरे लिए खानेके अलावा एक ठीक चलनेवाले चरखेका इन्तजाम भी रखें। मैंने देखा है कि मैं इस नयी व्यवस्थाके फलस्वरूप स्थानीय चरखोंसे भी परिचित हो जाता हूँ। चूँकि मेरा मेजबान आम तौरपर मुझे वहाँका सबसे अच्छा चरखा मुहय्या करनेकी कोशिश करता है, इसलिए मैं उससे उस स्थानपर सूतके उत्पादनकी क्षमताका अन्दाज लगा सकता हूँ। क्योंकि जब मैं देखता हूँ कि उनका दिया हुआ अच्छेसे-अच्छा चरखा बिलकुल निकम्मा है, तब मुझे पता चल जाता है कि वहाँ सूतका उत्पादन बहुत कम है। इसलिए मैं आशा करता हूँ कि मेरा मेजबान प्रत्येक स्थानपर मेरे लिए उपलब्ध होनेवाला सर्वोत्तम चरखा लाकर देगा और मेरे लिए कताईका समय भी