पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 26.pdf/५३३

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निकालेगा। तीसरी बात यह है कि मुझे आशा है कि एकत्र होनेवाली भीड़को यह हिदायत दे दी जायेगी कि वे नारे न लगायें अथवा शोरगुल न करें और मेरा मंचपर जानेका रास्ता साफ रखें। अक्सर इन भीड़ोंके बीचसे गुजर कर मंचतक पहुँचनेमें बहुत अधिक समय व्यर्थ चला जाता है। जब स्वयंसेवकोंको लोगोंको रोकनेके लिए हाथमें-हाथ मिलाकर कतारें बनानी पड़ती है तब मुझे मालूम हो जाता है कि लोगोंमें अभी वह अनुशासन नहीं आया है, जो भीड़ोंको नियन्त्रित रखनेके लिए जरूरी होता है। मैं जानता हूँ कि यदि लोगोंको पर्चे बाँटकर पहलेसे ही तफसीलवार हिदायतें दे दी जायें और सभाकी कार्रवाई आरम्भ होनेसे पहले मंचसे भी बार-बार जबानी हिदायतें दी जायें तो भीड़को अनुशासनमें रखना सम्भव है। लोगोंको यह भी हिदायत दे देनी चाहिए कि वे मेरे पाँव न छुएँ। मैं ऐसा सम्मान-प्रदर्शन नहीं चाहता। जो लोग मेरा सम्मान करना चाहते हैं, वे बस इतना ही करें कि वे मेरी जिन बातोंको अच्छी मानते हैं, उनपर अमल करें। यदि वे सम्मान करना ही चाहें तो सीधे खड़े होकर हाथ जोड़कर नमस्कार या सलाम करें। इतना तो काफी है। यदि मेरी चलती तो मैं इसे भी बन्द कर देता। प्रेमको आँखोंसे समझने में कोई कठिनाई नहीं होती। इसके लिए किसी दूसरे इंगितकी आवश्यकता नहीं। किन्तु मैं बंगालमें जो बात देखना चाहता हूँ वह यह है कि वहाँ मेरी सभाओंमें जो भी लोग इकट्ठे हों वे सभी खद्दर पहने हुए हों। इसका यह अर्थ नहीं है कि यदि कोई मनुष्य खद्दर न पहने हो तो वह सभामें से बाहर निकाल दिया जायेगा। जो लोग खद्दरमें विश्वास नहीं रखते, वे विदेशी वस्त्र या मिलके कते सूतके और मिलके बुने कपड़े पहनकर अवश्य आ सकते हैं। किन्तु मैं जानता हूँ कि लोग बहुत बड़ी संख्यामें खद्दरमें विश्वास रखते हैं और उन्हें तो अपने विश्वासपर अमल करना ही चाहिए। वे अपने विश्वासका प्रदर्शन अपने शरीरपर खद्दर पहनकर करें। अन्तिम बात यह है कि मैं इन सभाओंमें सभी दलोंके लोगोंके आनेकी आशा करता हूँ। मैं चाहता हूँ कि इन सभाओंमें सभी विचारोंके और सभी जातियोंके लोग और अंग्रेज भी आयें। मैं इतना निवेदन और कर दूँ कि अच्छा हो यदि स्थानीय संयोजक भाषण देने के लिए विशाल सभाएँ कम बुलायें और उसकी अपेक्षा व्यक्तिगत और खानगी (गुप्त नहीं) वार्तालापके अवसर अधिक रखें। हो सकता है कि विशाल सभाएँ बुलाना आवश्यक हो, किन्तु इनमें कमसे-कम वक्त खर्च होना चाहिए। मैं छात्रोंसे अवश्य मिलना चाहूँगा। महिलाओंकी सभाएँ भी सभी जगह होने लगी हैं। मैं यह भी चाहता हूँ कि प्रत्येक स्थानपर अछूतोंकी सभा भी हो। यदि भारतके इन भागोंके समान बंगालमें भी उनके लिए पृथक् मुहल्ले हों तो मैं उनमें भी जाना चाहूँगा। तात्पर्य यह है कि मेरी यह यात्रा कामकाजी यात्रा हो और शान्ति और सद्भावनाका प्रसार करना उसका मुख्य उद्देश्य हो।

अखिल भारतीय गोरक्षा मंडल

एक स्थायी अखिल भारतीय गोरक्षा सम्बन्धी संस्थाकी स्थापनाके लिए चलाया गया यह आन्दोलन एक कदम और आगे बढ़ा है। इस संस्थाके इस सम्बन्धमें विचार