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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

करनेके लिए तथा विचार करनेके बाद वांछित समझा गया तो उसका संविधान स्वीकार करनेके लिए बम्बईमें एक सार्वजनिक सभा या सम्मेलनका आयोजन किया गया है। इसकी सार्वजनिक सूचना पाठकोंने अवश्य देखी होगी। यदि न देखी हो तो वे इसे शीघ्र ही देखेंगे। मूल संविधान हिन्दीमें है और उसका शुद्ध किन्तु अपरिमार्जित अंग्रेजी अनुवाद तैयार है। यह सभा इस मासकी २८ तारीखको ठीक ८ बजे शामको माधवबाग, बम्बईमें होगी। यह स्थान इसी तरहके आन्दोलन शुरू करनेके लिए प्रसिद्ध है और यह ठीक ही है। मुझे विश्वास है कि इस सभामें ऐसा प्रत्येक मनुष्य अवश्य आयेगा जो उक्त संविधानको ठीक समझता है और यह मानता है कि सफलतापूर्वक गोरक्षा करने के लिए किसीके साथ संघर्ष में आये बिना और साधारणतः मनुष्यके लिए सम्भव जो उपाय इस संविधानमें समझाये गये हैं, वे सर्वथा उचित है। अहिन्दुओंसे जोरदार और भड़कानेवाली भाषामें अपीलें करके नहीं, बल्कि हिन्दू धर्ममें जो दोष और विकार आ गये हैं उनसे उसे मुक्त करके गोरक्षा की जा सकेगी। संविधानमें गोरक्षाके आर्थिक स्वरूपपर आग्रहपूर्वक जोर दिया गया है और यदि उसमें दी गई यह आर्थिक योजना सफल हो गई तो हमारे नगरोंको कुछ ही समयमें पूर्ववत् ही स्वच्छतम एवं शुद्ध दूध उपलब्ध होने लगेगा। इसका उद्देश्य यह भी है कि चमड़ा बनानेवाली संस्थाएँ इस संगठनके अन्तर्गत बनाई गई संस्थाओंसे जोड़ दी जायें या इससे सम्बद्ध की जायें। मैं इन सभीसे, चाहे वे छोटे हों या बड़े हों और राजा-महाराजा हों, जिनकी दृष्टि इन पंक्तियोंपर पड़े, यह अनुरोध करता हूँ कि वे इस संविधानका अध्ययन करें और यदि वे इसे सामान्यतः स्वीकार्य समझें तो वे इस सभामें अवश्य आयें और इस कार्यमें योग दें। किन्तु जो किसी अपरिहार्य कारणसे सभामें शामिल न हो सकें, वे सहानुभूति-सूचक पत्र भेजें और यदि भेज सकें तो नकद अथवा जिन्सके रूपमें चन्दा भेजकर संयोजकोंको अनुगृहीत करें।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १६-४-१९२५

२७९. मेरी स्थिति

अभीतक मैंने अ० भा० कांग्रेस कमेटीकी कोई बैठक नहीं बुलाई है। इस विषयमें बम्बईमें पहली बार मैंने कुछ शिकायत सुनी। एक संवाददाताने मुझसे इस विषयपर सवाल किया और लगा कि वे उसे अत्यन्त महत्व देते हैं। उनके इस आग्रहको कुछ मिनिटतक तो मैं समझ ही न पाया; क्योंकि मुझे इस बातका बिल्कुल पता नहीं था कि इस विषयपर पत्रोंमें कुछ चर्चा चल रही है। मुझे लगातार सफरमें रहना पड़ता है इससे अखबारी दुनियासे मेरा ताल्लुक ही टूट गया है। जब मद्रासमें शास्त्रीजीने [१] मुझे बताया तब कहीं सर अब्दुर्रहीमके [२] हकके मन्सूख किये जानेका समाचार कई दिन बाद, मुझे मालूम हुआ। वर्तमान घटनाओंके बारेमें अपने

१.वी० एस० श्रीनिवास शास्त्री।

२.देखिए "राष्ट्रीय सप्ताह", २-४-१९२५।