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मेरी स्थिति

अज्ञानपर मुझे अफसोस नहीं है। मैं जानता हूँ कि मैं जाहिर तौरपर उनपर कुछ असर नहीं डाल सकता। सर अब्दुर्रहीमके हक मन्सूख किये जाने-जैसी बुराइयोंका कोई तात्कालिक निदान मेरे पास नहीं है। इसलिए वर्तमान घटनाओं सम्बन्धी मेरे अज्ञानसे कुछ बनता-बिगड़ता नहीं है। मुझे तो अपने-आपको ऐसे कार्यकर्त्ताओंको तैयार करने में लगाना है जो कार्यदक्ष हों, अहिंसापरायण हों, आत्मत्यागी हों, जो चरखे और खादीमें, हिन्दू-मुस्लिम एकतामें, और यदि वे हिन्दू हों तो अस्पृश्यतानिवारणमें भी जीवन्त विश्वास रखते हों। कमसे-कम इस सालके लिए तो राष्ट्रका यही कार्यक्रम है, दूसरा नहीं।

मुझे उस शुद्ध "राजनैतिक" कार्यक्रमको चिन्ता करनेकी आवश्यकता नहीं जिसे कांग्रेसने स्वराज्यदलको, जो कांग्रेसका ही एक अंग है, सौंप दिया है। समयकी बचत करनेवाले व्यक्तिको हैसियतसे मेरी यह बेवकूफी होगी, अगर मैं उन बातोंके लिए अपना सिर खपाऊँ, जिन्हें मैंने खूब सोच-समझकर और पूरे विश्वासके साथ उन लोगोंको सौंप दिया है, जिन्होंने कि खुद ही अपने लिए उस क्षेत्रको विशेष रूपसे चुन लिया है और जो मुझसे ज्यादा नहीं तो कमसे-कम मेरे बराबर समर्थ हैं। मेरे लिए तो यही पर्याप्त है कि मैं दूरसे देखता रहूँ और इसकी तारीफ करूँ कि विधान परिषद्में पण्डित मोतीलाल नेहरू कैसी बहादुरीके साथ प्रयत्नशील हैं, या देशबन्धु दासने अपनी तन्दुरुस्ती गँवाकर भी कैसी शानके साथ इस सर्व शक्तिमान सरकारसे संघर्ष किया और जब-जब सरकारसे उनकी ठनी, वे विजयी हुए; या मध्यप्रान्तके स्वराज्यवादियोंमें कैसी अनूठी एकता है, और श्री जयकर कैसी शिष्टताके साथ चुपचाप सरकारके घरमें अपने कदम आगे बढ़ा रहे हैं। मैं उनके कामकी अनधिकारपूर्ण और महत्वहीन चर्चा करके इन महान् कार्यकर्त्ताओंका अपमान नहीं करूँगा। उनकी सफलताके लिए प्रार्थना करके, अनवरत प्रयासों द्वारा जिस एक-मात्र ढंगको मैं जानता हूँ उससे देशको तैयार करके मैं उनकी सहायता कर रहा हूँ।

कांग्रेसमें कोई फूट है, यह मैं नहीं जानता। मैं फूटसे अपना कोई वास्ता नहीं रखूँगा। कार्य-समितिमें अधिकांश सज्जन ऐसे हैं जो पूर्णतः मेरे विचारोंको नहीं मानते। उनका काम है मुझे सीधा रखना। इस साल मैं एक भी ऐसा काम नहीं करना चाहता, जिससे मेरे साथी सहमत न हों। कार्य-समितिकी कोई बैठक बुलाना जरूरी है या नहीं इस विषयपर मैं उन लोगोंसे लिखा-पढ़ी कर रहा हूँ। मैं नहीं चाहता कि बिला जरूरत उनका समय नष्ट हो। अ० भा० कांग्रेस कमेटीकी बैठकका आयोजन भी मैं इन्हीं कारणोंसे नहीं कर रहा हूँ। जब कोई नये आदेश देने हों, या नया कार्यक्रम बनाना हो तभी कांग्रेसकी बैठक की जा सकती है। हमें न तो नये निर्देश देने हैं, और न नया कार्यक्रम ही बनाना है। लगभग ४०० सदस्योंको दूर-दूरसे बुलाना आसान नहीं है। उनमें से अधिकांश गरीब हैं और सब अपने-अपने कामोंमें लगे हैं; ऐसा होना भी चाहिए। इसलिए मैंने जानबूझ कर ही कांग्रेसकी बैठक नहीं बुलवाई है। पर अगर बहुतसे सदस्य यह चाहते हों कि बैठक हो और यदि वे उसका प्रयोजन मुझे लिख भेजें तो मैं अविलम्ब बैठक बुला लूँगा।