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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जो सबसे जरूरी बात है वह यह कि हर प्रान्त अपना-अपना संगठन करे। प्रान्तीय कमेटियाँ जल्दी-जल्दी बैठक करें। कांग्रेसमें हर प्रान्तको कामके लिए पूरी आजादी तो है ही। हर प्रान्त ईमानदारी और परिश्रमके साथ नये मताधिकारके लिए काम करे। यह मताधिकार सफल नहीं होगा, ऐसा पहलेसे ही माननेकी प्रवृत्ति मुझे दिखाई देती है, इसलिए मैं निराशावादियों और झठमठ डरानेवाले लोगोंको बताना चाहता हूँ कि कताईकी हलचलकी जड़ मजबूत हो रही है, कमजोर नहीं। सारे हिन्दुस्तानमें कार्यकर्त्ता चुपचाप, निश्चयपूर्वक प्रभावपूर्ण काम कर रहे हैं। खादी पहलेसे अच्छी और ज्यादा बनने लगी है। खादीको सस्ता और ज्यादा टिकाऊ बनानेके कितने ही नये-नये प्रयोग हो रहे हैं। तिरुपुर शायद सबसे आगे है। लेकिन देशमें क्या हो रहा है उसका तिरुपुर तो एक नमूना-मात्र है। गुजरातमें प्रयोग अभी शुरू हुआ है। उसके द्वारा बहुत-कुछ करवानेकी सम्भावना है। खादीकी कीमतको ९ आनासे घटा कर ३ आना गज कर देने और साथ ही उसकी किस्म सुधारनेकी कोशिश हो रही है। कताई सदस्यताका अप्रत्यक्ष असर तो पहले ही काफी हो चुका है। प्रत्यक्ष परिणाम उन लोगोंकी योग्यता और ईमानदारीपर निर्भर है जो उसके लिए काम कर रहे हैं। उन्हें मेरी सलाह है:

१. आप सिर्फ उन्हीं लोगोंसे अनुरोध करें जो खुद कताई करते हों और उन सब लोगोंको सदस्य बना लें, जो अपना सूत लायें।

२. परन्तु स्वयं कातनेवालोंके प्रति तटस्थ रहें। उनकी मिन्नत-आरजू न करें। कताई सदस्यता एक विशेषाधिकार है। उन्हीं लोगोंका महत्व है जो इस विशेषाधिकारका मूल्य समझेंगे और उसे कायम रखनेके लिए काम करेंगे।

३. सच्चे सदस्य चाहे थोड़े ही बनें तो भी निराश नहीं होना चाहिए।

४. रुपया लेकर उसके बदलेमें सूत देने के चक्करमें न पड़ें। जो सदस्य बनना चाहते हैं, उन्हींको सूत लाने दें। जिन्हें सूतकी जरूरत हो, उनके लिए चाहें तो सूतके भण्डार खोल लें। प्रान्तीय खादी मण्डल इस कामको करें।

अब यहाँ मैं अपनी स्थिति स्पष्ट किये देता हूँ। मैं इस विविध कार्यक्रमको अपना चुका हूँ। मैं हिन्दू-मुस्लिम एकतामें जान नहीं डाल सकता। सो उसके लिए मुझे कोई प्रत्यक्ष कार्यवाही करनेकी जरूरत नहीं। एक हिन्दूकी हैसियतसे मैं उन तमाम मुसलमानोंकी सेवा करूँगा जो मुझे करने देंगे। जो मेरी सलाह चाहेंगे मैं उन लोगोंको सलाह दूँगा। उन दूसरोंकी मैं चिन्ता करना छोड़ देता हूँ जिनके लिए मैं कुछ नहीं कर सकता। लेकिन मुझे अपने मनमें पूर्ण विश्वास है कि एकता जरूर होगी, चाहे वह कुछ घमासान लड़ाइयोंके बाद ही क्यों न हो; किन्तु होगी जरूर। यदि कुछ लोग लड़ना चाहते ही हैं तो दुनियाकी कोई ताकत उन्हें रोक नहीं सकती।

अस्पृश्यताका अन्त आ गया है। सम्भव है कि उसे दूर करने में कुछ समय लगे, पर उसे दूर करनेकी दिशामें अद्भुत प्रगति हुई है। यह प्रगति विचार जगतमें ही अधिक हुई है किन्तु व्यवहारमें भी उसका असर चारों ओर दिखाई देता है। उस