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मेरी स्थिति

दिन माँगरोलमें [१] अछूतोंको अपने साथ बैठानेके खिलाफ एक भी औरतने हाथ ऊँचा नहीं उठाया। और उनके पास आकर बैठ जानेपर भी ये बहादुर स्त्रियाँ अपने स्थानसे नहीं हटीं। दृश्य भव्य था। ऐसा यह अकेला उदाहरण नहीं है। मैं जानता हूँ कि इस चित्रका कृष्ण पक्ष भी है। हिन्दुओंको इस सुधारके लिए अनवरत परिश्रम करना होगा। जितने ही अधिक कार्यकर्त्ता काम करेंगे उतना ही अच्छा नतीजा निकलेगा।

परन्तु कताईमें जो सफलता मिली वही सबसे ज्यादा उत्साहवर्धक है। देहातोंमें भी उसका प्रसार हो रहा है। मैं यह कहनेका साहस करता हूँ कि देहातोंके पुनरुस्थानका यही सबसे अधिक कारगर तरीका है। हजारों स्त्रियाँ कातना चाहती हैं। ताकि वे अपने खाने-पीनेके लिए कुछ पैसे कमा सकें। कुछ गाँव ऐसे भी हैं जिन्हें किसी सहायक पेशेकी जरूरत नहीं है। फिलहाल मैं उनके बारेमें कुछ नहीं कहता। जिस तरह मैं सदस्यताके लिए स्वयं कातनेवालों-की मिन्नत न करूँगा, उसी तरह मैं पैसेके लिए कातनेकी खुशामद नहीं करूँगा। यदि उन्हें गरज हो तो कातें वरना नहीं। कार्यकर्त्ताके सामने सबसे बड़ी दिक्कत है किसी न किसी कामकी जरूरत रहते हुए भी स्त्री-पुरुषोंको कातने या दूसरा काम करनेके लिए राजी करना। उन्हें लोगोंकी दयापर जीना या भूखों मरना स्वीकार है [काम करना नहीं]। हिन्दुस्तानमें लाखों लोग ऐसे हैं जिनके लिए जीवनमें कुछ रस नहीं रह गया है; हम खुद कातकर ही उनके जीवनमें कुछ उत्साह भर सकते हैं। मेरा तो मन कताईके अनुकूल वातावरण बनाने में लगा हुआ है। जब बहुतसे लोग किसी एक विशेष कामको करते हैं तब उसका ऐसा सूक्ष्म और अप्रत्यक्ष असर पड़ता है जो चारों और छाकर लोगोंको प्रभावित करता है। मैं ऐसा ही वातावरण चाहता हूँ जिससे वे आलसी लोग जिनका मैंने अभी वर्णन किया है बरबस चरखेकी ओर आकर्षित हो उठें। वे तभी आकर्षित होंगे जब वे देखेंगे कि जिन लोगोंको आवश्यकता नहीं है वे लोग भी चरखा कात रहे हैं। इसलिए इस कताई सदस्यताका विधान किया गया है।

परन्तु यदि कांग्रेसके कार्यकर्त्ता इस कार्यमें हाथ बटाना न चाहते हों तो वे शौकसे अगले साल कार्यक्रमको बदल दें। मैं अगले साल भी निश्चयपूर्वक लड़ाईसे दूर रहूँगा। यदि कुछ थोड़ेसे लोग भी सदस्य बननेके लिए सूत कातेंगे तब भी मैं कताई सदस्यताका समर्थन करूँगा। पर मैं कांग्रेसपर जबरदस्ती अपना अधिकार बनाये रखना नहीं चाहता। मैं तो सिर्फ अपनी सीमाएँ बता देता हूँ। शक्तिके बिना मैं सुधार नहीं कर सकता। और वह शक्ति लोगोंको हिंसा या अहिंसाके लिए सुसंगठित करने ही से आ सकती है। मैं उन्हें सिर्फ अहिंसाके ही मार्गपर संगठित कर सकता हूँ, या फिर कुछ नहीं कर सकता। पर अभीतक मेरे असफल होनेका कोई लक्षण नहीं दिखाई देता। सफल होनेकी पूरी आशा है। अहिंसाके लिए संगठन करनेका अर्थ है ग्रामवासियोंको ऐसा काम देना जिससे उन्हें कुछ आमदनी हो, उन्हें अपनी कुछ बुरी आदतें छोड़नेके लिए राजी करना, अछूतोंके मनमें हिन्दुत्वका अभिमान जगाते हुए तथा एक समान उद्देश्यमें विश्वास और उसके हेतु काम करनेके लिए हिन्दू,

१. काठियावाड़में। देखिए "भाषण: माँगरोलकी सार्वजनिक सभामें", ८-४-१९२५।