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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मुसलमान सभी लोगोंको संयुक्त करते हुए उनमें एक राष्ट्रीयताकी भावना भरना। जबतक ये तीनों बातें पूरी न हो जायें तबतक कोई राजनैतिक काम करनेकी ओर मेरी प्रवृत्ति नहीं है। मैं भी हमारे दूसरे बड़े नेताओंकी ही तरह जितनी जल्दी हो सके स्वराज्य स्थापित करनेके लिए ही उत्सुक हूँ। हमपर होनेवाले अन्यायोंको मिटानेके लिए भी मैं उतना ही अधीर और आतुर हूँ जितना कि कोई दूसरा उत्साही देशभक्त। पर मैं राष्ट्रकी सीमाएँ जानता हूँ। उन्हें दूर करने के लिए मुझे अपनी ही सूझ-बूझके अनुसार काम करना होगा। हो सकता है, यह एक लम्बा और नीरस रास्ता हो। पर मैं जानता हूँ कि यही सबसे छोटा रास्ता साबित होगा। पर लोग एक-सा नहीं सोचते; और सोचना चाहिए भी नहीं। यदि देशमें ऐसे लोगोंकी संख्या बहुत ज्यादा हो जो इसी सालमें कांग्रेसकी कार्य-प्रणाली और सदस्यतामें परिवर्तन चाहते हों तो वे ऐसा कर सकते हैं, बशर्ते कि वे यह यकीन दिलायें कि कांग्रेसकी बैठकमें सब सदस्य उपस्थित होंगे और भारी बहुमत उनके पक्षमें होगा। यद्यपि ऐसा करना कांग्रेस संविधानके अनुकूल न होगा, फिर भी कांग्रेस कमेटीका भारी बहुमत यदि संविधानको भी बदलना चाहे तो मैं उसके रास्तेमें बाधक न होऊँगा। यदि ऐसा करनेकी जरूरत दिखलाई जा सके और भारी बहुमत उसके पक्षमें हो तो कांग्रेस कमेटी ऐसा गम्भीर कदम उठा सकती है। पर यदि ऐसे परिवर्तनकी कोई आवश्यकता नहीं है तो हम सब लोगोंको उचित है कि कांग्रेसके स्वराज्यदल सम्बन्धी काममें किसी प्रकार, किसी रूपमें हस्तक्षेप न करते हुए अपना ध्यान कताई सदस्यताकी ओर लगायें। कांग्रेसका हर सदस्य ईमानदारीके साथ आध घंटा रोज चरखा काते और जिन लोगोंकी रुचि उसमें है वे पूरा समय उसके संगठन कार्यमें लगायें। राष्ट्रसे इतना माँगना कोई बड़ी मांग नहीं है।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १६-४-१९२५

२८०. अभागी बहनें

दक्षिण यात्रामें मुझे जितने अभिनन्दन-पत्र मिले उन सबमें अत्यन्त हृदयस्पर्शी वह था जो देवदासियोंकी ओरसे दिया गया था। [१] देवदासीको वेश्या शब्दका सौम्य पर्याय ही समझिए। वह अभिनन्दन-पत्र उस जातिके लोगोंने तैयार और समर्पण किया था जिसमें से हमारी ये अभागी बहनें देवदासी बनाई जाती हैं। जो शिष्टमण्डल मुझे अभिनन्दन-पत्र देने आया था, उससे मुझे यह मालूम हुआ कि उन लोगोंमें सुधार तो हो रहा है पर उसकी गति मन्द है। उस शिष्टमण्डलके मुखियाने मुझसे कहा कि आम जनता इस सुधारकी ओर उदासीन है। सबसे पहला आघात मुझे कोकोनाडामें पहुँचा, और मैंने इस विषयपर वहाँके लोगोंके सामने साफ-साफ शब्दोंमें अपने विचार

१. इस अभिनन्दन-पत्रके उत्तरमें दिये गये गांधीजीके भाषणके लिए देखिए "भाषण: पुदुपालयमके आश्रममें", २१-३-१९२५। ।