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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

धाराला

गुजरातमें धाराला एक खूँखार लड़ाका कौम है। उसका मुख्य पेशा खेती है। लेकिन रुपये-पैसेकी तंगीके कारण उन्होंने लूट मारको भी अपना पेशा बना लिया है। खून करना उनके लिए कोई असाधारण बात नहीं। १९२१ में आत्मशुद्धिकी जो लहर भारतमें उठी थी, उसका उनपर भी असर हुए बिना न रहा। इस बीच जो कार्यकर्ता तैयार हुए हैं वे उनके अन्दर इसी इरादेसे काम कर रहे हैं कि उनका भीतरी सुधार हो। १९२३ में श्री वल्लभभाईने जिस शानदार सत्याग्रह संग्रामको शुरू किया था और जिसका उन्होंने बहुत सफलतापूर्वक नेतृत्व भी किया था, उसने उन लोगोंके अन्दर एक जबरदस्त जागृति पैदा कर दी है। सोजित्राकी यह परिषद् इसी सुधारका एक फल थी। वे हजारोंकी तादादमें एकत्र हुए थे। उन्होंने सभामें होनेवाले भाषणोंको पूरी शान्तिके साथ सुना। जो प्रस्ताव पास हुए उनका सम्बन्ध शराब और नशीली चीजोंका सेवन न करने, अपनी लड़कियोंको पैसा लेकर न बेचने तथा लड़कियोंका अपहरण न करनेसे था। उनमें यह बुराई बहुत फैली हुई है।

अन्त्यज

उसी सभा-मण्डपमें सोजित्रा तथा आसपासके अन्त्यज भी एकत्र हुए थे। और उनके नेता मंचपर बैठाये गये थे। सवर्ण और अस्पृश्य आपसमें निस्संकोच होकर मिलते थे। शराब न पीने और खादी पहननेके प्रस्ताव पास हुए। सभाके संचालकोंने अपना सभा-मण्डप अन्त्यजोंको देकर साहसका परिचय दिया। क्योंकि मैंने देखा कि पेटलाद जिला छुआछूतके भावसे मुक्त नहीं है।

महिला परिषद्

इस परिषद्का दृश्य तो एक बड़ा ही प्ररेणादायक दृश्य था। पाटीदार[१] महिलायें थोड़ा-बहुत पर्दा करती हैं। सोजित्राकी जनसंख्या सात हजारसे ज्यादा नहीं है। पर सभामें कोई १० हजार महिलायें जरूर रही होंगी। मेरी जानकारीमें तो बड़े-बड़े शहरोंमें भी महिलाओंकी इतनी बड़ी सभा नहीं हुई। महिलाओंने भाषणोंको ध्यानपूर्वक और बिना शोरगुलके सुना। मैंने अक्सर देखा है कि महिलाओंकी सभामें शान्ति रखना बड़ा कठिन होता है। सो इस सभाका हाल देखकर सबको--व्यवस्थापकोंको भी--बड़ा आनन्द और ताज्जुब हुआ। इस परिषद्में कोई प्रस्ताव नहीं रखा गया। व्याख्यान खास तौरपर खादी और चरखेपर ही हुए।

किसानोंकी परिषद् दो दिनतक कुल मिलाकर पाँच घंटे चली। दूसरी परिषदें एक-एक घंटेमें समाप्त हो गईं।

कालीपरज

सोजित्राका सारा प्रबन्ध सादा और व्यवस्थित था ही, पर वेडछीने तो कमाल कर दिया। मेरे मुँहसे हठात् निकल पड़ा कि सादगी, स्वाभाविकता और रुचिकी

 
  1. जमींदार।