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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

दूसरी बात लिखना आसान है, करना बहुत कठिन है। विषय बड़ा नाजुक है। पर इसी कारण इस बातकी ज्यादा आवश्यकता है कि सभी विचारशील लोग इसकी ओर ध्यान दें। इन अभागी बहनोंके सुधारका काम केवल वही लोग करें जो इसके लिए विशेष रूपसे योग्य हों। मेरा यह सुझाव है कि उन लोगोंके बीच काम किया जाये, जो इन पापागारोंमें जाते हैं।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १६-४-१९२५

२८१. संगसारीके बारेमें

मेरा ऐसा कोई विचार नहीं था कि मैं 'यंग इंडिया' के इन पृष्ठोंमें 'कुरान शरीफ' की या उसमें वर्णित किसी भी विषयकी चर्चाको स्थान दूँ। पर चूँकि मैंने स्वयं ही संगसारीकी सजाके बारेमें बहस शुरू की थी, [१] इसलिए ख्वाजा साहबके लेखको [२] स्थान देनेसे इनकार करना मेरे लिए उचित न था। इसका उद्देश्य यह है कि 'यंग इंडिया' के पाठकोंको प्रामाणिक तौरपर मालूम हो जाये कि 'कुरान शरीफ' में किसी भी स्थितिमें संगसारीकी अनुमति नहीं है और धर्म त्यागके लिए मनुष्यको उसके जीवनकालमें दण्ड देनेका विधान भी नहीं है। किन्तु 'यंग इंडिया' में संगसारीके विषयमें अब आगे कोई चर्चा नहीं की जायेगी।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १६-४-१९२५


१. देखिए "संगसारीकी सजा", २६-३-१९२५।

२. ख्वाजा कमालुद्दीनके इस लेखका आशय इस प्रकार था:

"महात्माजीने इस्लाममें धर्म त्यागके दण्ड-सम्बन्धी विवादको आरम्भ करके इस्लामकी सेवा की है।... कुरान शरीफमें निःसन्देहअ न्तःकरणकी स्वतन्त्रता दी गई है। वह धर्मके मामलेमें व्यक्तिकी निजी दृष्टि और विश्वासका सम्मान करता है। 'धर्मके मामले में किसी भी तरह जोर-जबर्दस्ती न करनेके' सर्वोत्कृष्ट नियमके प्रतिपादनका श्रेय केवल कुरान शरीफको ही है। धर्म छोड़ना आखिर, धर्मके बारेमें विचार-परिवर्तन ही तो है। यदि इसे दण्डित किया जाये तो यह धर्मके मामलेमें जोर-जबर्दस्ती होगी और इसलिए यह कुरान शरीफके खिलाफ होगी।...महात्माजी कहते है कि हर बातको विवेककी कसौटीपर कसना चाहिए। मैं उनसे सहमत हूँ। कुरान शरीफ भी अपने सत्योपदेशोंमें यही कहता है।..."