पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 26.pdf/५४२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

२८३. भाषण: सूपाके गुरुकुलमें[१]

१६ अप्रैल, १९२५

पिछली बार मैं यहाँ आनेका निश्चय करके भी आ नहीं पाया था। आज आया हूँ; किन्तु आप मेरी आवाजसे अनुमान लगा सकते हैं कि मैं जोरसे और देर तक नहीं बोल सकता। मैं चार-पाँच दिनसे बीमार हूँ और भ्रमणके योग्य नहीं रहा हूँ। किन्तु मैंने बहुतसे लोगोंको आशा बँधाई थी, इसलिए मैंने यह विचार किया कि शरीर जितना काम दे सकता है, उतना करूँगा। किन्तु चूँकि स्वास्थ्य ठीक नहीं है, इसलिए मुझे जल्दी चले जाना पड़ेगा अन्यथा मैं कुछ समय यहाँ बिताता और आपसे अच्छा परिचय करके ही जाता।

मुझे ब्रह्मचारियोंको देखकर बहुत प्रसन्नता हुई। मुझे यहाँ मानपत्र देनेकी जरूरत होनी ही नहीं चाहिए। मेरा यहाँ आना कोई आश्चर्यकी बात नही। शायद एक दो गुरुकुल ही ऐसे होंगे, जिनमें मैं नहीं गया हूँ। गुरुकुल कांगड़ी तो गुरुकुलोंका पिता है। मैं वहाँ कई बार गया हूँ। स्वामीजीके [२] साथ मेरा सम्बन्ध बहुत पुराना है। सन् १९०८में जब दक्षिण आफ्रिकामें सत्याग्रह चला था, तभीसे मेरा उनका सम्बन्ध रहा है। मैं उस समयतक स्वामीजीसे नहीं मिला था। किन्तु उनके ब्रह्मचारियोंने जो काम किया था उसका एक विवरण उन्होंने मेरे पास भेजा था। तब जो सम्बन्ध बना, वह आजतक चला आता है। आपने आर्य समाजके सम्बन्धमें मेरी लेखनीसे लिखी गई कोई आलोचना देखी हो तो आप उससे भ्रमित न हों, क्योंकि मेरी टीका प्रेममय होती है, यह मेरे आत्माकी साक्षी है। गुरुकुल कांगड़ीसे मेरा सम्बन्ध आध्यात्मिक है, और वह अटूट है। अब मैं आपको यह बताऊँ कि गुरुकुल कांगड़ीके ब्रह्मचारियोंने क्या किया था। वह कौनसा काम था जिससे हमारा सम्बन्ध अटूट बन गया।

जब दक्षिण आफ्रिकामें सत्याग्रही जेल जाते थे तब भारतसे धनकी वर्षा होती थी। तब सत्याग्रह एक नई चीज थी। किसीको इस बातकी कल्पना भी न थी कि लगभग निरक्षर और थोड़े से दक्षिण आफ्रिकी हिन्दुस्तानी गोरोंसे लड़ेंगे और जेलोंमें जायेंगे। किन्तु वे जेलोंमें गये और यहाँ हिन्दुस्तानमें लोगोंके हृदयपर उसका आघात लगा एवं सर्वत्र धन-संग्रह शुरू किया गया। ब्रह्मचारियोंने सोचा कि 'अब हम क्या करें', उनके पास पैसा तो होता नहीं है। पैसा हो तो वे ब्रह्मचारी नहीं कहे जा सकते। वे सब स्वामीजीके पास गये। स्वामीजीने उनको शरीर-श्रम करनेकी सलाह दी। वहाँ तब एक बाँध बनाया जा रहा था। स्वामीजीने ठेकेदारको पत्र लिखा कि वे उनके ब्रह्मचारियोंको दैनिक मजूरीपर काम दे दें। ठेकेदारने यह बात स्वीकार

१. यह भाषण मानपत्रके उत्तरमें दिया गया था।

२. स्वामी श्रद्धानन्द।