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भाषण: सूपाके गुरुकुलमें

कर ली और सूचित किया कि वे ब्रह्मचारियोंको सामान्य मजदूरोंसे अधिक मजूरी देंगे। इससे ब्रह्मचारियोंको बहुत प्रसन्नता हुई। उन्हें तो वह पैसा आफ्रिका भेजना था। ठेकेदारको लगा कि ब्रह्मचारियोंको दो पैसे अधिक दूँ तो अच्छा होगा। इस प्रकार एक-दो दिन निकले। ब्रह्मचारियोंने मजदूरोंसे अधिक काम किया। उनके नेताको भी भय था कि इस प्रकार काम लम्बा न चलेगा। किन्तु ब्रह्मचारियोंने तो अन्त तक हार नहीं मानी। उन्होंने जिस शक्तिसे आरम्भ किया उसे अन्ततक कायम रखा। मैं आपसे भी अनुरोध करता हूँ कि आप भी ऐसा ही करें। आप देशकी खातिर श्रम-यज्ञ करें। यज्ञका अर्थ है परहित कार्य। उन ब्रह्मचारियोंने जैसा श्रम-यज्ञ किया था वैसा श्रम-यज्ञ देशके निमित्त आप भी करें। वृद्ध जन अधिक श्रम नहीं कर सकते तो वे कुदाली लेकर जमीन खोदें अथवा पाखाने साफ करें।

आपने गुरुकुल कांगड़ीकी कहानी सुनी होगी? (यदि आपने न सुनी हो तो आपके आचार्य पदच्युत कर दिये जाने चाहिए।) वह गंगाके किनारेपर स्थित है। वहाँ बाघ और चीते रहते थे। घना जंगल था। स्वामीजी तो पहाड़-जैसे थे। तुम्हारेजैसे बच्चे तो एकपर-एक चढ़कर भी उनके कानतक ही पहुँच सकते थे। उन्होंने आप-जैसे बालकोंको वहाँ ले जाकर उनसे सारा काम करवाया। वहाँ बाघ-चीते अब भी रहते हैं। किन्तु वे सब चीतोंसे डरनेवाले नहीं थे। गुरुकुलकी स्थापना इस प्रकार की गई थी। गुरुकुलको सुन्दर बनाने में स्वार्थ भी है; किन्तु उस स्वार्थमें परमार्थ निहित है। शारीरिक यज्ञके साथ मानसिक यज्ञ भी करना चाहिए। आपको पैसा इकट्ठा करनेके लिए नहीं किन्तु देशसेवा करनेके लिए मनको प्रशिक्षित करना चाहिए। आत्म-यज्ञ भी देशसेवाके लिए ही किया जाता है। आपमें जो भी प्रतिभा हो आप उस सबका उपयोग देश और धर्मके निमित्त करें। आप इस प्रकार विविध यज्ञ कर सकते हैं। आप २५ वर्षकी आयुतक तो ब्रह्मचर्यका पालन अवश्य करें। जिस संस्थामें मनुष्यको २५ वर्षतक निर्विकार रखनेवाली शिक्षा नहीं दी जाती, वह संस्था गुरुकुल नहीं कही जा सकती। ब्रह्मचारी और संन्यासी एक ही कहे जाने चाहिए। ब्रह्मचारी स्वभावतः माताके दूधके साथ ब्रह्मचर्य या संयमका पान करते हैं। किन्तु यदि कोई ब्रह्मचर्यका पालन आजन्म न कर सके तो उसके लिए गृहस्थ आश्रम विद्यमान है। उसका पालन भी संयमसे करना चाहिए। मेरी इच्छा है कि आप संयमीका जीवन बिताना सीखें। इसके लिए आपको मेरा आशीर्वाद भी है।

[गुजरातीसे]
महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ७


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