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२८४. गुरुकुलके लिए शुभकामनाएँ [१]

१६ अप्रैल, १९२५

ईश्वरका धन्यवाद है कि मेरी इस गुरुकुलको देखने की चिर अभिलाषा आज पूरी हुई। ईश्वर करे यह संस्था फले-फूले और इसमें पढ़नेवाले ब्रह्मचारी धर्म और देशके सच्चे सेवक सिद्ध हों।

[अंग्रेजीसे]
बॉम्बे क्रॉनिकल, ३०-४-१९२५

२८५. भाषण: नवसारीके अन्त्यज आश्रममें

१६ अप्रैल, १९२५

आपका कर्त्तव्य दुहरा है। आप अन्त्यजोंपर दूसरोंकी सेवाका दायित्व है। आप सब बालक हैं और आम तौरपर बालकोंकी कोई जिम्मेदारी नहीं मानी जाती। वे जो-कुछ करते हैं शिक्षकों अथवा व्यवस्थापकोंके मार्गदर्शनमें करते हैं। किन्तु यह नियम आपपर लागू नहीं होता। आप बालक होनेपर भी बड़े हैं। मेरे साथ लक्ष्मी [२] है। मैं इससे कहता हूँ कि बहन, तुझपर बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। तेरे माध्यमसे ही सब अन्त्यजोंकी परीक्षा होगी। जो जगत आज अन्त्यजको दबा रहा है उसको यह बताना तुम्हारा काम है कि अन्त्यजमें और दूसरोंमें कोई भेद नहीं है। अच्छे और बुरे लोग दोनोंमें ही हैं। ये दोनों एक ही हैं; किन्तु हिन्दू समाज यह नहीं मानता। इसे मनवानेका एक साधन यह आश्रम है। ऐसा होनेपर अस्पृश्यताका प्रश्न कुछ हदतक हल हो जायेगा। बच्चोंको क्या करना चाहिए? आप अखाद्य वस्तुएँ न खायें। आप इस बातको अपने मनमें से निकाल दें कि जिनको खराब चीज खानेकी आदत पड़ जाती है, उनको अच्छी चीज मिलने पर भी वह रुचती नहीं है। आपका धर्म है कि आप स्वच्छ रहनेका पूरा प्रयत्न करें। आप दाँत अच्छी तरह साफ करें। वे दूध-जैसे सफेद होने चाहिए। आप अपनी आँखें और नाक भी साफ रखें। बिस्तरसे उठते ही राम नाम जपें। आप अपने चारों ओरकी वायु स्वच्छ रखें। मनसे शुद्ध रहें और सत्य भाषण करें।

[गुजरातीसे]
महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ७

१. गुरुकुल सूपाकी दर्शक-पंजिकामें दर्ज शुभ कामनाएँ गुजराती या हिन्दीमें रही होंगी।

२. दूदाभाईकी कन्या।