पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 26.pdf/५४५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

२८६. भाषण: पारसियोंकी सभामें[१]

१६ अप्रैल, १९२५

नवसारीकी यात्राका एक रोचक प्रसंग था, पारसी भाइयोंकी सभा। गांधीजीने उनके सम्मुख अपना हृदय ही खोलकर रख दिया था। मैं कह सकता हूँ कि इसका पारसी भाइयोंपर गहरा प्रभाव पड़ा। गांधीजीने कहा कि पारसी भाइयोंसे मेरी मित्रता बहुत पुरानी है और में उनका बहुत दिनोंसे ऋणी हूँ। जब दक्षिण आफ्रिकाके गोरे लोगोंने मुझपर आक्रमण करते हुए मेरी जान लेनी चाही थी तब पारसी रुस्तमजीने अपने प्राणों और सम्पत्तिके लिए भारी खतरा मोल लेकर मुझे आश्रय दिया था। जब मैं पहले-पहल इंग्लैंड गया तब मैं दादा भाई नौरोजीके ही चरणोंमें बैठा था। जब मैं १८९६ में दक्षिण आफ्रिकासे लौटा तब सर फीरोजशाह मेहताने मेरा मार्गदर्शन किया था। आज भी दादाभाई नौरोजीकी नातिन और मीठबाई पेटिट और श्री भरूचा, जिन्हें खद्दरके प्रचारके अतिरिक्त किसी दूसरी बातका कोई खयाल नहीं है, मेरे निकटतम साथियोंमेंसे हैं। तब मुझे इस जातिमें कोई दोष कैसे दिख सकता है? यदि मैं उनके साथ अपना सम्पर्क और भी बढ़ा सकूँ तो मैं अपना अहोभाग्य समझूँगा। जब मुझे दक्षिण आफ्रिकाके लिए रुपये की जरूरत हुई तब मुझे श्री गोखलेने कहा कि रुपये रतन टाटासे मिल सकते हैं और उन्होंने जी खोलकर दान दिया। [२] जब स्वराज्य कोष इकट्ठा किया गया तब सबसे ज्यादा रुपया एक पारसीने ही दिया था। मानव-हितैषियोंकी सूचीमें डॉड्सने पारसियोंको सबसे ऊँचा स्थान दिया है। दानशीलता आत्माका गुण है और वह पारसियोंमें कूट-कूटकर भरा है। यदि आपने भारी दानशीलताके कारण अबतक इतना दिया है, तब क्या आप एक कदम और आगे न बढ़ेंगे? मैं रुपया नहीं माँगता, बल्कि सच्चा दान चाहता हूँ। मैं यह चाहता हूँ कि पारसी बहनें अपने दिलोंमें देशके गरीबोंको स्थान दें। मैं चाहता हूँ कि वे रेशमी साड़ियाँ पहनना छोड़ दें और बिलकुल खद्दर पहनने लग जायें। श्रीमती पेरीन कैप्टन, श्रीमती नरगिस कैप्टन, और कुमारी मीठूबाई पेटिट लगनके साथ गरीब पारसी बहनोंसे खादीपर कसीदेका काम करवा रही हैं और उसे धनी पारसी और हिन्दू बहनोंको बेच रही है। क्या आप इन बहनोंसे खद्दर नहीं खरीदेंगे? किन्तु सभी लोग धनी नहीं हैं। ज्यादातर तो गरीब हैं। किन्तु एक काम तो गरीबसेगरीब आदमी भी कर सकता है और वह है, प्रतिदिन आधा घंटा चरखा चलाना। गरीबोंसे अपने आपको एकरूप करनेका एक-मात्र तरीका यही है।

१. महादेव देसाईके "गुजरातमें गांधीजीके साथ" शीर्षक अंग्रेजी लेखसे उद्धृत।

२. देखिए खण्ड ११, पृष्ठ २९५।