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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

आपसे मेरी दूसरी प्रार्थना यह है कि आप शराब पीना और बेचना छोड़ दें। मैं जानता हूँ कि आपके लिए शराब छोड़ना मुश्किल काम है। मैं अपने मित्र पारसी रुस्तमजीको शराब न पीने की प्रतिज्ञा करनेके लिए बहुत मुश्किलसे राजी कर सका था और साहसी होनेपर भी उन्होंने कुछ दिन बाद अपनी वह प्रतिज्ञा तोड़ वी थी। किन्तु इसके लिए गम्भीरतापूर्वक प्रयत्न करना चाहिए और उसे हमेशाके लिए त्याग देना चाहिए। आपको यह समझ लेना चाहिए कि समाजमें टाटा और धन-कुबरोंका प्रवाह अनन्त नहीं हो सकता और एक बार समाजको यह बुरी लत पड़ जानेपर धनका यह स्रोत निश्चय ही कभी-न-कभी सूख जायेगा। इसका अर्थ यह होगा कि आपके-जैसी यह एक छोटी जाति बरबाद ही हो जायेगी। आपके लिए शराबका व्यापार छोड़ना मुश्किल नहीं है। आप मेहनती हैं और आपको करनेके लिए दूसरे बहुतसे धन्धे मिल सकते हैं। आपके छोटे समाजके लिए हिन्दुओंके भारी-भरकम समाजकी अपेक्षा यह सुधार करना बहुत आसान है। में जहाँ भी जाता हूँ पारसियोंको शराबकी दूकानोंके व्यवस्थापकोंके रूपमें देखता हूँ। आपको इस रूपमें देखकर मेरा दिल तो रोता है। मैं आशा करता हूँ कि आप मेरी इस सलाहपर ध्यान देंगे और जहाँतक विदेशी कपड़े और शराबबन्दीका सम्बन्ध है, मुझे निश्चिन्त कर देंगे।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २३-४-१९२५

२८७. पत्र: डाह्याभाई पटेलको

चैत्र बदी १० [१८ अप्रैल, १९२५][१]

भाईश्री ५ डाह्याभाई,

तबीयत खराब हो जानेसे मुझे अपना घोलका ताल्लुकेका दौरा इस बार स्थगित करना पड़ा है। इससे मुझे शर्म भी मालूम होती है और दुःख भी। किन्तु मैं तो लाचार हो गया हूँ। मुझमें जितनी शक्ति बची है, उसे मैं आराम करके बंगालके लम्बे प्रवासके लिए संचित रखना चाहता हूँ। इसलिए मैं घोलकाके भाइयों और बहनोंसे आशा करता हूँ कि वे मुझे क्षमा कर देंगे। मेरा घोलकामें आनेका निश्चय तो कायम है ही और अवसर मिलते ही जल्दीसे-जल्दी वहाँ आऊँगा और लोगोंको सन्तोष दूँगा। आप मेरी ओरसे लोगोंको यह आश्वासन दे दें। तबतक मेरी इच्छा है

१. गांधीजी बंगालके दौरेपर अप्रैल, १९२५ के अन्तमें रवाना हुए थे। उन्होंने यह पत्र अवश्य ही उससे पहले लिखा होगा।