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भाषण: जम्बुसरमें

कि सभी चरखेका खूब प्रचार करें और खादीका व्यवहार बढ़ायें। वे रुई दें अथवा उसके मूल्यके बराबर पैसा दें और सभी हिन्दू अन्त्यजोंके प्रति प्रेमभाव बढ़ायें।

मोहनदास गांधीके वन्देमातरम्

मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० २६८९) से।

सौजन्य: डा० पटेल

२८८. तार: मथुरादास त्रिकमजीको

शनिवार [१८ अप्रैल, १९२५][१]

आनन्द जबतक चाहें हमसे सेवा लें।

[गुजरातीसे]
बापुनी प्रसादी

२८९. भाषण: जम्बुसरमें[२]

१८ अप्रैल, १९२५

आपने अन्त्यज भाइयोंको भुलानेकी जो भूल की है, मुझे उससे दुःख होता है। जहाँ-कहीं समाजके इस छोटे किन्तु महत्त्वपूर्ण अंगकी उपेक्षा होती है, वहाँकी नगर पालिका कार्य-कुशल नहीं कही जा सकती। हम अपने भाई-बन्धुओंके साथ चाहे कितने भी घुले-मिले क्यों न हों, लेकिन जहाँ सिद्धान्तकी बात हो वहाँ हमें उनका साथ तनिक भी नहीं देना चाहिए। आपने इस नियमका पालन नहीं किया। अपने मनको इस भुलावे में डालनेके लिए कि आपने मझे मानपत्र दिया है, आप इस सत्यको भला बैठे हैं। आप जिसे मानपत्र देना चाहते हैं, उसके जीवनको इस तरह विभक्त नहीं कर सकते कि उसके एक हिस्सेको तो अपना लें और दूसरेको छोड़ दें। मैंने एक बार नहीं, अनेक बार कहा है कि मैं जीवनमें अस्पृश्यता-निवारणको अपना पहला धर्म-समझता हूँ। मैं दिन-रात अस्पृश्यता निवारणकी चर्चा न करूँ तो मैं अपनेको सच्चा हिन्दू नहीं मान सकता। अगर हिन्दू धर्म अस्पृश्यताको न त्यागेगा तो २२ करोड़ हिन्दुओंका, और इसलिए सारे हिन्दुस्तानका, नाश निश्चित है। इसलिए इस मानपत्रको देनेवाले लोग अस्पृश्यता-निवारणके विरोधी या उसके प्रति उदासीन हों, तो उन्हें इस मानपत्रको देनेका अधिकार नहीं था। मानपत्रमें हृदयका भाव आना चाहिए। अगर मैं कोई सरकारी अधिकारी या सरदार होता तो शायद मेरी खुशामद

१. छपे साधन-सूत्रमें शनिवार, तारीख १९-४-१९२५ दी गई है, किन्तु शनिवार १८ तारीखको था।

२. जम्बुसर नगरपालिका द्वारा दिये गये मानपत्रके उत्तरमें।