पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 26.pdf/५४८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५१८
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कुछ ठीक होती। लेकिन मैं न तो सरकारी अधिकारी हूँ और न सरदार। मैं तो भंगी हूँ, चमार हूँ, खेतिहर हूँ और सेवक हूँ। ऐसे सेवकको भी मानपत्र दिया जा सकता है, लेकिन तभी जब आप मेरी प्रवृत्तिके अत्यन्त महत्त्वपूर्ण भागको ठीक समझते हों। हिन्दू-मुस्लिम एकताके बिना स्वराज्य नहीं मिल सकता, यह सच है। लेकिन अगर वे एक-दूसरेसे लड़ते हैं तो लड़ें; क्या उससे हिन्दू धर्मका लोप हो जायेगा? लड़ते-लड़ते किसी-न-किसी दिन तो हम एक होंगे ही। खादी और चरखेका नाश होनेसे भी हिन्दू धर्मका नाश नहीं होगा। हाँ, हमें अपनी करनीका फल जरूर भोगना होगा, भूखों मरना होगा। लेकिन अगर अस्पृश्यताका निवारण न हुआ तो हम नष्ट हो जायेंगे, हिन्दू धर्म नष्ट हो जायेगा, हमें दुनियाके आगे आँखें नीची करनी पड़ेंगी, हमें दुनियाके आगे जवाब देना होगा, और सभी हमारे विश्वधर्मके उपदेशकी हँसी करेंगे।

यह मानपत्र, मानपत्र नहीं है, बल्कि मेरे लिए एक चेतावनी है। अस्पृश्यताका त्याग किये बिना आप मुझ-जैसे भंगीको कैसे स्वीकार कर सकते हैं? इससे तो अच्छा होता कि आप मुझे यह कह देते, 'हमें आपकी अस्पृश्यताकी बात स्वीकार नहीं है। फिर भी आप यहाँ आना चाहें तो भले ही आयें'। आपने खादीके सम्बन्धमें अपनी कमजोरीको स्वीकार किया है, लेकिन आप जबतक अस्पृश्यताका त्याग नहीं करते तबतक खादीकी प्रवृत्ति भी मन्द गतिसे ही चलनेवाली है। आप अपने मकानकी पाँचवी या छठी मंजिलपर बैठकर दारुबन्दी भी कैसे करा सकते हैं? आपको सबसे निचले तल्लेपर लगी आगका पता नीचे आये बिना नहीं लग सकता।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, २६-४-१९२५

२९०. भाषण: भड़ौंचमें [१]

१८ अप्रैल, १९२५

आपने प्रेमवश अपने मानपत्रको असंगत विशेषणोंसे भर दिया है। मैं इनके योग्य हूँ या नहीं, यह दूसरी बात है। इसलिए उसका उत्तर देना कठिन है। आपका काम सड़कोंकी सफाई और बच्चोंकी शिक्षाको व्यवस्था करना है। इन बच्चोंमें अन्त्यज बालक भी आ जाते हैं। ये सब काम सार्वजनिक हैं और छोटे लगनेपर भी निश्चय ही महत्त्वपूर्ण हैं। किन्तु आपने मेरे लिए जिन विशेषणोंका प्रयोग किया है, उनसे इन कामोंको करने में आपको कोई सहायता नहीं मिलेगी। यदि आपने मानपत्रमें यह कहा होता, "आप इस कार्य में आयें। इसमें रस लें, आपकी समाज-सुधारकी प्रवृत्ति हमें अच्छी लगती है और यदि आप इच्छा या अनिच्छासे इस राजनैतिक कार्यमें न पड़ते तो कितना अच्छा होता" तो मुझे ज्यादा खुशी होती। किन्तु आपके मानपत्रमें यह भाव निहित है, ऐसा मानकर इसका उत्तर दो शब्दोंमें देता हूँ।

१. स्थानीय निकायकी ओरसे दिये गये मानपत्रके उत्तरमें।